Thursday, October 8, 2009

आहार की विसंगतियाँ

आहार की विसंगतियॉं

आहार की विसंगतियॉं क्या है ?

किसी भी प्राणी के लिए आहार सेवन निर्णायक होता है । जैसा कि हम देखते हैं छोटे पशु से लेकर मनुष्य तक जीवित रहने के लिए आहार आवश्यक है । निम्न कोटि के प्राणियों के लिए आहार एक ईंधन का कार्य करते हैं, तो मनुष्य के लिए आहार अविश्वसनीय स्वाद और रूचि का स्त्रोत होते हैं ।

मानव-जीवनाधार के लिए आवश्यक आहार के सेवन पर कुछ जटिल घटक प्रभावित करते हैं ।

ये प्रमुख घटक है -

* इसका स्वाद (कितनी आसानी या तकलीफ अथवा इन आहारों का त्याग करते हैं)

* इसकी कैलोरी का मापदण्ड (शरीर भार में कितनी उपादेयता है)

इन घटकों के आधार पर आहार सेवन की कुछ समस्याएँ उत्पन होती है । इनका अधोलिखित वर्गीकरण किया जाता है -

* एनोरेक्जिया नर्वोसा

* बुलिमिया नर्वोसा

* भूख न लगना किसी के द्वारा अत्याधिक या अत्यल्प आहार सेवन करना

* मोटापे से परेशान होकर दुबले होने के लिए आहार त्याग करना

* अत्याधिक मोटा होने पर उसकी परवाह न करना और इससे अन्य समस्याएँ होना

* वसा, ग्राम, कैलोरी और आहार से चिंतित होना

आहार की अनियमितता से क्या खतरे हो सकते हैं ?

आहार की अनियमितता से किसी भी आयु में समस्याएँ उत्पन हो सकती हैं । प्रायः 12-30 वर्ष की आयु के युवा अधिक प्रभावित होते हैं और यह पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक होती है ।

किशोरावस्था में आहार की अनियमितता अधिक होती है । इसका कारण मिडिया का बढ़ता प्रभाव, कॉलेज का जीवन, मित्रगण, किशोरावस्था, हार्मोन का परिवर्तन, परिपक्वता का अभाव और अपनी पहचान बनाने या स्वतंत्रता के जैसे कारणों से ये किशोर जीवन के अस्वस्थ्यकर मार्गों को अपना लेते हैं ।

मानसिक तनाव को भी आहार की अनियमितता का एक घटक माना जाता है ।

इसके अतिरिक्त, मिडिया द्वारा दर्शाये जाने वाले भार के प्रति चेतना और अकृत्रिम सौंदर्य उपायों की बाढ़, सेलेब्रिटी और बाहरी सुन्दरता के तुरन्त उपायों के कारण भी युवा बच्चों में आहार की अनियमितताओं की एक खतरनाक लहर-सी चल पड़ी है ।

आहार की अनियमितताएँ किसी व्यक्ति के आहार की समस्या लक्षण नहीं होती, किन्तु ये लक्षण उसके जीवन में छिपी किसी बड़ी समस्या को दर्शाते हैं ।

एनोरेक्सिया नर्वोसा

दुबले होने की इच्छा से अथवा मोटे होने के भय से जो लोग अत्याधिक डायटिंग करते हैं और दुबले हो जाते हैं, उनमें यह एनीरेक्सिया होता है ।

ये लोग मानक शरीर भार के अथवा न्यूनतम भार होने पर भी स्वयं को मोटा मानते हैं ।

ये लोग तीव्र रूप से कुपोषित होने पर शरीर के कुछ मोटे भागों का भार कम करना चाहते हैं । इस प्रयास में वे आहार और कैलोरी का त्याग करते रहते हैं और सम्यक चिकित्सा न पाने पर इसके परिणाम स्वरूप मृत्यु हो जाती है ।

एनोरेक्सिक के कुछ लक्षण

एनोरेक्सिक परिपूर्णता का प्रयत्न करते हैं । इसके लिए वे सम्यक्‌ और अतार्किक तरीके अपनाते हैं और उच्च स्तर प्राप्ति की कल्पना करने पर हार जाते हैं ।

वे अपनी आवश्यकताओं से अधिक महत्व दूसरों की आवश्यकताओं को देते हैं । इनमें आत्मविश्वास बहुत कम होता है । वे दूसरों की स्वीकृति पर आधारित होते हैं और इसके लिए वे कुछ भी कर सकते हैं ।

परिपूर्णत्व के व्यवहार के कारण ये एनोरेक्सिक अपने जीवन की शैली, आहार और भार का नियंत्रण स्वयं करने में विश्वास रखते हैं । क्योंकि आसपास की घटनाओं से सचेत रहते हैं, इसलिए वे अपने शरीर सौष्टव (फिगर) का बहुत ध्यान रखते हैं ।

वे अपने ध्येय की पूर्ति की जॉंच प्रतिदिन सुबह और दिन में कई बार करते रहते हैं ।

शरीर भार कम होने पर वे अपने आपको शक्तिवान समझते हैं और इससे अपनी अवरोधित भावनाओं और संवेदना को उजागर करते हैं । इनके लिए वास्तविकता का सामना करने की अपेक्षा डायट आसान काम होता है ।

एनोरेक्सिक इतने आत्मसम्माननीय होते हैं कि वे यह महसूस करते हैं कि आहार उनके उपयोगी नहीं है । इस कारण वे आहार का त्याग कर अपनी त्रुटि की सजा पाकर अपने अकदामिक कार्यों में विफल होते हैं । ये लोग अक्सर दूसरों के लिए खाना बनाते हैं किन्तु स्वयं सेवन नहीं करते ।

एनोरेक्सिक भूख को कभी स्वीकार नहीं करते । वे अन्यों के आहार सेवन के आग्रह से बचना चाहते हैं ।

इनकी बड़ी समस्या है इन्हें भरती करके इनकी समस्या के लिए इनकी सहायता करना है । क्योकि एक बार ऐसा करने से प्रभावकारी तरीके से इनकी मनोवैज्ञानिक पोषक और चिकित्सा सहायता की जा सकती है ।

प्रमुख सावधानी के लक्षणों को जॉंचे

* अप्रत्यक्ष कारणों से अचानक भार में कमी होना

* एकाकीपन और अचानक अन्तर्मुखी होना

* प्रत्यक्ष थकान होने पर भी व्यायाम करना, वैसे जल्दी थक जाना

* आहार, कैलोरी, विधि और डायट फूड के प्रति कृत्रिम अलहेलना होना

* भोजन की अप्रसारित आदतें जैसे आहार छोटे-छोटे टुकड़ों में बॉंटना, आहार के लिए अत्यन्त पसंदगी

* अत्यल्प होने पर भी बहुत वसा की शिकायत करना

* दूसरों के लिए पकाना, पर स्वयं न खाना

* भोजन के प्रति शर्माना या अपराध बोध होना

* विषाद, चिड़चिड़ापन और मूड परिवर्तन

* मासिक धर्म की अनियमितता और अनार्तव (मासिक धर्म नहीं होना)

* शरीर भार को छिपाने के लिए ढीले (बैगी) कपड़े पहनना और मित्रों या पालकों के साथ रूम बदलने की आदत होना

* बार-बार भार जॉंचना

* चक्कर और मूर्छा का वृत्तान्त

* सार्वजनिक स्थल पर अथवा होटल में खाने से कतराना

* परिपूर्णत्व को दर्शाने का अनौचित्य दर्शाना

* आहार त्याग कर स्वयं को उसके योग्य दर्शाना ।

एनोरेक्सिया के उपद्रव

* अत्याधिक थकान से पेशियों की प्रगाढ़ता में कमी

* कुपोषणजन्य अनार्तवता और वंध्यता

* मर्म अवयवों में रक्तसंचार की कमी से मूर्छा और चक्कर

* हृदय के कार्य में बाधा के कारण अनियमित हृदय गति । पोटाशियम की कमी के कारण हृदयगति रुक कर मृत्यु

* रक्तसंचार की कमी के कारण हाथ पैरों में सुनता

* आहार अवधि की अनियमितता से आध्मान, कब्ज

* पैथोलोजिकल फैक्चर, हड्डियों का पतला और भंगूर होना

* इलेक्ट्रोलाइट के असंतुलन से गुर्दे और लीवर खराब होना

* मानसिक अवसाद, विषाद और अन्य मनोवैज्ञानिक समस्याएँ

बुलिमिया नर्वोसा

यह तेज भूख लगने पर बार बार आहार सेवन को चरिथार्थ करता है और इसमें रोगी अनैच्छिक कैलोरी से छुटकारा सेवन से पाने का प्रयत्न करता है । यह आदत भी सभी प्रकार के आहारों से होती है । ये अत्यधिक खाते है और उसका त्याग रेचन से करते हैं ।

रेचन के लिए रोगी वमन या मृदु विरेचक का अनावश्यक उपयोग, भूखे रहकर मूत्रल दवाएँ लेक, डायट पिल्स या एनिमा का उपयोग करते हैं ।

बुलेमिक (क्षुधातिशय) के रोगियों में एनोक्सिया की तरह हठधर्मिता कम होती है । ये रोगी दूसरों के अनुमोदन पर आधारित होते हैं ।

वे आहार सेवन को अपना आराम समझते हैं । अपनी संवेदनाओं का वे स्वयं नियंत्रण नहीं कर पाते ।

सौभाग्यवश, एनोरेक्सिक के विपरीत वे अपनी समस्याओं को समझते हैं और इसके लिए किसी प्रकार की सहायता भी स्वीकारते हैं ।

इन लक्षणों को जॉंचे

* खूब खाने की आदतें और छुपकर खाने की आदतें

* खाने के बाद बार-बार बाथरूम जाना

* बिना किसी कारण वमन करना और इसके लिए चिकित्सा सहायता लेने से इनकार करना

* रेचक, डायटमिल या मूत्रल औषध का अतिशयोक्त उपयोग का प्रमाण

* 6-8 किलो भार तक में कमी या अधिकता होना

* अधिक दबाव के कारण मूँह, नाक या गुदा से रक्त का रिसाव होना

* अत्याधिक व्यायाम का अधिमान होना । थकान और पेशीय दुर्बलता होना

* अनिश्चित धार्मिक कारणों से व्रत पालन करना या व्यर्थ में व्रत रखना । आहार सेवन पर पर्याप्त नियंत्रण न होने का भय होना

* शरीर भार की फेर बदल से मूड में परिवर्तन या विषाद होना

* आहार सेवन से स्वयं की आलोचना करना और ख्याति प्राप्त व्यक्तियों से निरर्थक तुलना करना

* बार बार वमन के कारण दॉंतों की सड़न, जीभ या गला पकना

* रेस्टोरेंट के आहार को नियमित भोजन, सामाजिक कार्यों को जहॉं भोजन करना हो - ऐसे स्थलों को टालना ।

* रेचन और वमन के प्रयोग से इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन होना

* पेप्टिक अल्सर या पेंक्रियाटाइटिस होना

* हृदयाघात और मृत्यु

क्या इन आहार सेवन की विसंगतियों को ठीक कर सकते हैं

हॉं, एक बार रोगी स्वीकृति होने पर इन्हें ठीक कर सकते हैं । इसके लिए अधोलिखित उपाय करने पड़ते हैं -

एनोरेक्सिक के लिए पहले उनका सामान्य भार होना चाहिए । उनकी आहार सेवन की की आदतों के अध्ययन के लिए अस्पतालीकरण जरूरी है । फिर उनके शरीर की क्षति और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन की जानकारी के आधार पर चिकित्सा दी जाती है ।

एक बार घर जाने पर पोषण विशेषज्ञ इन्हें आदर्श शरीर भार होने और उनकी आहार सेवन की इच्छा सामान्य होने तक योजना बनाता है ।

समस्या के मूल तक जाने के लिए काउंसिलिंग जरूरी है । क्योंकि ऐसे रोगी में आहार से समस्या नहीं होती, इनमें भीतरी संवेदना की समस्या होती है । रोगी और परिवार के सदस्यों की काउंसिलिंग करने से समस्या समाप्त हो सकती है और रोगी ठीक हो सकता है ।

भूख न लगना

दो सप्ताह से अधिक समय तक भूख न लगने पर यह एक महत्वपूर्ण लक्षण हो जाता है । इससे थकान और स्वाद में परिवर्तन के साथ शरीर में कहीं भी दर्द होने लगता है ।

भूख न लगने से क्या लक्षित होता है

इन्फेक्शन: लगभग सभी इन्फेक्शन में भूख नहीं लगती । चाहे किसी भी प्रकार का इन्फेक्शन - साधारण जुकाम, सर्दी, फ्लू या गंभीर टी.बी., हिपेटाइटिस, आंतों का इन्फेक्शन हो, भूख नहीं लगती है ।

अन्य अवयवों की खराबी: थायरॉड, हृदय, फेफड़े या लीवर के रोग होने पर भी भूख नहीं लगती है ।

कैंसर: दुर्भाग्यवश, कैंसर का प्रथम लक्षण भी भूख कम लगना रहा है । इसके साथ स्वाद में परिवर्तन होता है । भूख न लगने से भार में कमी होती है । अन्य इन्फेक्शन की जानकारी के लिए पूरी परीक्षा करना चाहिए ।

दवाएँ: कुछेक एंटीबायोटिक स्वाद अंकुरों में अवरोध उत्प कर देते हैं । इससे आंत तक भोजन देर से पहुँचता है और पेट भरा होने का अहसास होता है और भूख नहीं लगती ।

कुछ दवाएँ जैसे एंकेटामाईन जो भार कम करने के लिए दी जाती है, इनके उपयोग से भी भूख कम लगती है । दर्द निवारक दवाएँ - जो आर्थाइटिस में देते हैं, उससे आमाशय में जलन होकर गेस्ट्राइटिस और वमन होने से भी आहार के प्रति आसक्ति कम हो जाती है । डिजिटलेटिस और मूत्रल दवाएँ भी क्षुधा नाशक हैं ।

विटामिन की कमी: जिंक, विटामिन सी, बी कॉम्प्लेक्स से भी स्वाद अंकुर को हानि होकर क्षुधा नाश होता है ।

नित्य कर्म में परिवर्तन: नये व्यायाम, कोठोर डायटिंग या आहार परिवर्तन होने पर शरीर को उसके अनुरूप होने में समय लगता है और भूख में कमी होती है ।

मानसिक तनाव: मानसिक स्वास्थ्य का शरीर की क्रियाओं और आहार की इच्छा पर सीधा प्रभाव होता है । निश्चित समयावधि में कार्य समाप्ति तनाव से भी भूख नहीं लगती । विषाद में कुछ तो कम खाते हैं किन्तु कुछ अधिक खाने लग जाते हैं ।

आहार की विसंगति: आहार विसंगति जैसे एनोरेक्सिया या बुलिमिया में लक्षित क्षुधा नाश के साथ उसके उपद्रव भी होते हैं ।

इसका उपाय क्या है ?

क्षुधानाश एक लक्षण है रोग नहीं है । इसलिए यह निश्चय करें कि कारण क्या है ? इसके कुछ कारण ये हैं -

सामान्य भूख की जानकारी - स्वस्थ आहार सेवन की आदत है विभिन प्रकार के आहार सेवन करें, न कि इसमें विशेष प्रकार के ही आहार का सेवन करें । यदि कोई व्यक्ति सामान्य आहार सेवन से सन्तुलित भार का नियोजन करता है तो वह सामान्य है ।

दवाओं की समालोचना - अपने डॉक्टर से किसी प्रकार दवा सेवन की जानकारी लेंवे । सीधे दवा की दुकान से खरीदी दवा या प्रेस्क्राइब्ड दवा से भी क्षुधानाश हो सकता है । समस्या के समाधान के लिए ऐसी दवा की एकान्तर दवा लेवें ।

अल्पाहार लेंवे - आल्पाहार सेवन से आपका पाचन सही होता है और खाने की इच्छा जागृत होती है । इससे शरीर भार भी संतुलित रहता है । अपचन कम होता है ।

विटामिन पूरक - विटामिन और जिंक की कमी से क्षुधा नाश होता है । इन पूरकों से स्वादांकुर का स्वास्थ्य ठीक होता है और भूख की इच्छा होती है । स्वयं के निर्णय से 8-10 से अधिक विटामिन न लेंवे ।

आप जैसा चाहे खायें - यदि भोजन में चाव न हो तो व्यंजन बदल कर देंखे । ऐसे आहार को खोजें जिसमें आपकी रूचि हो और उसकी सेवन करें । इससे आप गलत आहार सेवन की आदत से बच पाते हैं । भूख न लगने पर भोजन बन्द न करें ।

अधिक जलपान करें - निर्जलीकरण से भी भूख कम लगती है और पाचन बराबर नहीं होता । प्रतिदिन कम से कम 6-8 गिलास पानी पीयें ।

विश्राम -कई बार मानसिक तनाव कम होते ही भूख लगने लगती है । इसलिए तनाव कम करना जरूरी है । तनाव न बढ़ने देंवे ताकि आपका स्वस्थ्य खराब न होने लगे । लंबी अवधि तक क्षुधानाश होने पर आहार विसंगति से मृत्यु तक हो सकती है ।

Sunday, September 27, 2009

स्वस्थ रिश्ते


स्वस्थ संबंधों के क्या लक्षण हैं?
कोई दो व्यक्तियों में स्वस्थ रिश्ते चार गुना उत्पादकता की तरह होते हैं, जो दो परिपक्व, समझदार व्यक्तियों के बीच एक आपसी संघठन की वजह से एक साथ चुनने के लिए किये जाते हैं। दो व्यक्तियों की एक जोड़ी के बीच के स्वस्थ संबंधों को इन बातों से पहचाना जा सकता है :
• उन्हें खुश और तनावमुक्त बनाये रखें
• अपेक्षाकृत लचीली यथार्थवादी अपेक्षाओं पर आधारित हों
• बात करने के लिए सहभाजन मतलब और प्रभावी संचार सुनिश्चित करें
• स्वयं की एक उच्च स्तरीय निर्भरता को बनाये रखें, न कि अन्य व्यक्तियों पर आधारित रहें
• समस्याओं को मुश्किल से हल करने के लिए उचित तकनीकों का प्रयोग करें, बजाय इसके उनकी समस्याओं को और उलझायें नहीं
स्वस्थ व्यक्तियों के बीच कैसे रिश्ते हो सकते हैं?
• स्वस्थ संबंधों में याद रखने की सबसे महत्वपूर्ण एक बात यह है कि दोनों व्यक्ति आपसी फैसले एक साथ करें और निश्चित रूप से बहुत सी बातें एक दूसरे के बारे में आनंद की तरह होती है, और एक दूसरे की कंपनी में होती हैं। जब तक दो लोगों के साथ मिलकर उन दोनों के बीच मन में बहुत चीजें रख कर काम करने का इरादा रखते हैं। तब निम्नलिखित, समस्या की संभावना समय के किसी भी बिंदु पर हो सकती हैं:
यथार्थवादी उम्मीदें जानें: सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है, सब लोग अलग अलग होते हैं और कोई भी एक जैसा पूरा नहीं हो सकता है, जिसे हम उससे सब कुछ करवाना चाहते हों। कभी कई, मतभेद निराशाजनक हो सकते हैं, लेकिन यह मुद्दा - सभी या कोई भी नहीं - स्टैंड अपनाने के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। एक स्वीकार्य मध्यम मार्ग को प्राप्त करना ही एक बेहतर विकल्प हो सकता है। स्वस्थ रिश्ते का मतलब है, हमारी कोशिश होनी चाहिये,मांग के अनुसार बदलना और जैसे है, उन्हें स्वीकार करना होना चाहिये।

संचार का महत्व जानें: जैसा ही एक साथी या जोड़ी के रूप में लोगों में जल्द ही एक अच्छी समझ विकसित या एक महत्वपूर्ण संबंध जैसे शादी तय करने के लिए मिलते हैं, वे समझते हैं कि दूसरे व्यक्ति "उन्हें और" उनकी हर कार्रवाई को समझें या उन्हें पता होना चाहिए। शुरू में यह मामला कभी नहीं हो सकता। बेशक, एक महत्वपूर्ण रिश्ता दो लोगों के बीच का एक उच्च स्तरीय समझ का तात्पर्य रखता है, लेकिन यह ईन्सानियत में एक सीमित हद तक ही संभव हो सकता है। संचार को मतभेद समाशोधन के एक साधन के रूप में देखा जाना चाहिये,न कि किसी दूसरे व्यक्ति को अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी होते देखा जाना चाहिए। इन तथ्यों को मस्तिष्क में रखें और वास्तव में वहाँ जायें, जब वह बोलता है उस व्यक्ति को सुनें, शरीर की भाषा को समझें, अगर वे कुछ असहज या शर्मिंदा करें तो, स्पष्ट रूप से समझने के लिए प्रश्न पूछें और विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने की कोशिश करें। आप ईमानदार रहें और यदि आपने किसी भी समय में एक गलती की हो, अपने आपके शब्दों और कार्यों के लिए जिम्मेदारी लें।
थोड़ा लचीला होना सीखें: बहुत से लोग बिना समझे अन्यों पर नियंत्रण का प्रयास करते हैं और वे बराबर लोगों और परिस्थितियों को पसंद कर बस रास्ता बनाने की कोशिश करते रहते हैं। हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि जब तक वे न चाहें, आप उन्हें बदल नहीं सकते, और उन्हें अधिक विकसित करने और उनकी पसन्द के अनुसार चीजों में सुधार लाने के लिए स्वयं को प्रोत्साहित करने के लिए वैध है ... आप दोनों इस वृद्धि का लाभ उठाने के लिए बाध्य होते हों।
अपना उत्तरदायित्व जानें: अक्सर व्यवहार की अतिस्थिति की सीमा होती है , लोग आकर्षित करने में इतने तल्लीन हो जाते हैं कि वे अपनी देखभाल भी भूल जाते है या वे अन्यों से आशा करते हैं कि उनकी देखभाल करें, उनका ध्यान रखें और उनसे हर समय उन्हें प्यार करते रहें। रिश्ते में दोनों सीमायें समस्याओं को पैदा करती है। अपने आप को जितना संभव हो ध्यान रखना जिम्मेदार होने के लिए मूलभूत जिम्मेदारी है और जब दूसरों को खुश करते हों तो अपने प्रयास की सीमा जान लें। हमेशा सबको खुश रखना संभव नहीं है, और किसी के द्वारा आपके लिए, आप में, हर समय ध्यान रखने से अच्छा हो सकता है। आप अकेले ही खुश होने का पता लगाएं, और आपका, खुद का एक जीवन है, क्योंकि इसे ज़्यादा देर तक नहीं कर सकते हैं आपको किसी के लिए क्या करना है, वह कैसे / वह अच्छा हो सकता है, यह सब यूं ही सब कुछ छोड़ें दें।
निर्भर रहना सीखें: अपने शब्द उच्चारण करते समय आप के गंभीर महत्व को लोग समझ सकें और आपके साथ महत्वपूर्ण विवरण शेयर कर सकें या प्रमुख कार्यों की उच्च स्तरीय जिम्मेदारी आपको विश्वास की उम्मीद के साथ सौंप सकते हैं। जब आप एक ज़िम्मेदारी लेते हैं और व्यक्तिगत रखने को कहा जाये तो, तब उसे पूरा करें।
तर्क का प्रबंधन कैसे करें जानें: अधिकांश रिश्तों में कुछ मत भिन्नता होती है, और उनमें से अधिकांश भूल जाते हैं कि वे केवल एक दूसरे के साथ असहमत हैं, और इसका मतलब यह नहीं है कि वे एक दूसरे को पसंद नहीं है! रिश्तों को याद दिलाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है, तर्क के नाटक से एक बाहर आयें, क्योंकि एक तर्क बस, राय में एक अंतर को इंगित करता है और यह सामान्य है कि सभी का सोचने का तरीका अलग अलग होता है। एक तर्क से निपटने के लिए सबसे अच्छा तरीका है:
• यह तब होता है, जब आप दोनों एक अच्छे मूड में हैं और यह दिन भर की थकान का बाद नहीं होता।
• धैर्य और पूरी तरह से दूसरे व्यक्ति को पहले क्या कहना है सुनें, अपने विचार या मान्यता के साथ दखल न करें।
• किसी की कल्पना नहीं करें और तर्क को भावनाओं में स्थान प्रदान न करें, अतीत की बातों से लिंक न करें और आलोचना से या अन्य व्यक्ति पर आरोप लगाने से बचें, इससे समस्या का समाधान नहीं होता है, यह केवल सिर का भार कम कर आपको अस्थायी आनंद प्रदान करता है।
• कृपया जब आपकी अपनी खुद की गलती हो तो माफी माँगनी चाहिये, या यहाँ तक कि कभी कभी तो यह आपकी गलती नहीं होने पर भी माफी माँग लेनी चाहिये। एक गलती स्वीकार करने से लिए कुछ खर्च नहीं होता और दो लोगों के बीच कई बड़ी समस्याओं का हल हमेशा एक के अंत हो जाता है।
• केवल एक समस्या के अंत के बारे में और एक तरफा ही न सोचें, कभी कभी, समस्या के बारे में एक दूसरे की बातों को समझने की बात करने से भी एक बेहतर परिणाम हो सकता है। इस के बाद अच्छा लग सकता है, यह एक तर्क का अच्छा अन्त हो सकता है। और, अगर इससे आपको उम्मीद से कम प्राप्त हो तो भी शिकायत करने के लिए याद न रखें।

गर्मीजोशी दर्शाना जानें: अधिकांश लोग रिश्तों में गर्मजोशी के छोटे इशारों और इस साधारण कारण अकेलेपन के महत्व को कम आंकते हैं। यह एक अजीब सबसे आम कारण है जिससे कुछ बेहतरीन संबंध के टूट जाते हैं। रिश्तों में और स्वस्थ संबंधों के लिये सबसे मूल्यवान पहलू है, जिसमें गर्मजोशी प्रचुर मात्रा में होती है।
यह एक प्रक्रिया है,जानें: कई बार, ऐसा लगता है कि दो लोगों के बीच सब कुछ स्वत: ही हो जायेगा। तथापि, लोगों को पूरा करने के लिए और उन्हें पता करने के लिए मिल समय लगता है। बातचीत में शामिल हों, आम हितों को खोजें, और विश्वास का निर्माण करें और एक दूसरे के साथ एक खुशकिस्मती है. प्रत्येक स्वस्थ रिश्ते, व्यवहार एक दूसरे को जानने के लिए बेहतर बनाने में समय के साथ विकसित होते हैं ...
स्वयं को जानें: बहुत से लोग जो उनके असली स्वभाव या उनके वास्तविक क्षमताओं को नहीं दर्शाते उन्हें यह पता नहीं होता कि सच्चाई का भेद देर सबेर खुल जायेगा। और इससे रिश्तों में दरार और कड़वाहट होती है। स्वस्थ रिश्ते असली लोगों के बीच होते हैं, और नकली तस्वीरें पेश नहीं की जाती है।

जगजीत सिंह की गाई गजलें


माईलस्टोन

1.मिलकर जुदा हुये तो सोया करेंगे हम
एक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम

आँसू छलक छलक के सतायेंगे रात भर
मोती पलक पलक में पिरोयेंगे रात भर

जब दूरियों की याद दिलों को सतायेगी रात भर
जिस्मों को चाँदनी में भिगोया करेंगे हम

गर दे गया दगा तूफाँ भी क़तील
साहिल पे कश्तियों को डुबोया करेंगे हम (क़तील शिफाई)


2. ये मोजेजा भी मोहब्बत कभी दिखाये मुझे
के संग तुझ पे गिरे और जख़्म आये मुझे

वो मेहरबां है तो इकरार क्यूँ नहीं करता
वो बदगुमान है तो सौ बार आज़माये मुझे

वो मेरा दोस्त है सारे जहान को है मालूम
दगा करे वो किसी और से तो शरम आये मुझे

मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूँ क़तील
ग़मे-- हयात से कह दो ख़रीद लाये मुझे (क़तील शिफाई)

3. दिल को ग़मे हयात गँवारा है इन दिनों
पहले जो दर्द था चारा है इन दिनों

ये दिल ज़रा सा दिल यादों में खो गया
ज़र्रे को आँधियों का सहारा है इन दिनों

तुम सको तो शब को बढा दूँ कुछ और भी
अपने कहे में सुभो का तारा है इन दिनों (क़तील शिफाई)


4. अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको

मुझसे तू पूछने आया है व़फ़ा के मानी
ये तेरी सादा दिली मार डाले मुझको

खुद को मैं बाँट डालूँ कहीं दामन दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको

वादा फिर वादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ क़तील
शर्त ये है कोई बाहों में संभाले मुझको (क़तील शिफाई)

5. परेशां रात सारी हैं सितारों तुम तो सो जाओ
सुकुँ मर्ज तारी है सितारों तुम तो सो जा आओ

तुम्हे क्या आज भी कोई मिलने नहीं आया
ये बाजी हमने हारी है सितारों तुम तो सो जाओ

कहे जाते हो रो रोके हमारा हाल दुनिया से
ये कैसी राजदारी है सितारों तुम तो सो जाओ (क़तील शिफाई)


6. अंगडाई पर अंगडाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मेरी तन्हाई की

कौन सियाही घोल गया था वक़्त के बहते दरिया में
मैंने आंख झुकी देखी है आज किसी हर्जी की

वस्ल की रात जाने क्यूं इसरार था उनको जाने पर
वक़्त से पहले डूब गये तारों ने बडी दानी की

उडते उडते आस का पंछी दूर ऊफक में डूब गया
रोते रोते बैठ गई आव़ाज किसी सौदाई की (क़तील शिफाई)

7. सदमा है मुझे भी के तुझसे जुदा हूँ मैं
लेकिन ये सोचता हूँ के अब तेरा क्या हूँ मैं

बिखरा पडा है तेरे ही घर में तेरा वज़ूद
बेकार मेहफिलों में तुझे ढूँढता हूँ मैं

ना जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूँ मैं (क़तील शिफाई)

8. तुम्हारे अंजुम से उठके दिवाने कहाँ जाते
जुन्बा बस्ता हुये हमसे वो अब सारे कहाँ जाते

तुम्हारी बेरुखी ने लाज रख ली वादा-फन की
तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते

चलो अच्छा हुआ काम आगई दिवानगी अपनी
वर्ना हम ज़माने भर को समझाने कहाँ जाते (क़तील शिफाई)

9. पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइये
फिर जो निगाह- - यार कहे मान जाइये

पहले मिजाज़ राह गुज़र जान जाइये
फिर कर्दे राह जो भी कहे मान जाईये

कुछ केह रही है आपके सीने की धडकनें
मेरा नहीं तो दिल का कहा मान जाइये

इक धूप सी ज़म़ी है निगाहों के आसपास
ये आप हैं तो आप पे क़ुरबान जाइये

शायद हुज़र से कोई निस्बत हमें भी हो
आँखों में झाँककर हमें पहचान जाईये (क़तील शिफाई)

10. परेशाँ रात सारी हैं सितारों तुम तो सो जाओ
सुकुत मर्ज तारी है सितारों तुम तो सो जाओ

हमें तो आज रात पौ फटे तक जागना होगा
यही किस्मत हमारी है सितारों तुम तो सो जाओ

हमें भी नींद जायेगी हम भी सो जा जायेंगे
अभी कुछ बेकरारी है सितारों तुम तो सो जाओ (क़तील शिफाई)


एक्स्टेसीस

1. जवाँ है रात साकिया शराब ला शराब ला
ज़रा सी प्यास तो बुझा शराब ला शराब ला

तेरे शबाब पर सदा करम रहे बहार का
तुझे लगे मेरी दुआ शराब ला शराब ला

यहाँ कोई ना जी सका ना जी सकेगा होश में
मिटा दे नाम होश का शराब ला शराब ला

तेरा बडा ही शुक्रिया पिलाये जा पिलाये जा
ना ज़िक्र कर हिसाब का शराब ला शराब ला (मदनपाल)

2. पसीने पसीने हुये जा रहे हो
ये बोलो कहाँ से चले रहे हो

हमें सब्र करने को कह तो रहे हो
मगर देख लो खुद ही घबरा रहे हो

ये किसकी बुरी तुमको नजर लग गई है
बहारों के मौसम में मुरझा रहे हो

ये आईना है ये तो सच ही कहेगा
क्यों अपनी हक़ीकत से कतरा रहे हो (सईद राही)


3. तुमने सूली पे लटकते जिसे देखा होगा
वक़्त आयेगा वही शख्स मसीहा होगा

ख्वाब देखा था के सेहरा में बसेरा होगा
क्या खबर थी के यही ख्वाब तो सच्चा होगा

मैं फिज़ाओं में बिखर जाऊँगा खुशबू बन कर
रंग होगा ना बदन होगा ना चेहरा होगा (साहिल होशयार पुरी)

4. मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा
दीवारों से टकराओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

हर बात गवारा कर लोगे मन्नत भी उतारा कर लोगे
ताबीजें भी बँधवाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

तन्हाई के झूले झूलोगे हर बात पुरानी भूलोगे
आईने से घबराओगे जब ईश्क तुम्हें हो जायेगा

जब सूरज भी खो जायेगा और चाँद कहीं सो जायेगा
तुम घर देर से आओगे जब ईश्क तुम्हें हो जायेगा

बैचेनी जब बढ़ जायेगी और याद किसी की आयेगी
तुम मेरी गज़ल गाओगे जब ईश्क तुम्हें हो जायेगा (सईद राही)

5. जब से हम तबाह हो गये
तुम जहाँ पनाह हो गये

हुस्न पर निखार गया
आईने सियाह हो गये

आँधियों की कुछ ख़ता नहीं
हम ही दर्द--राह हो गये

दुश्मनों को चिठ्ठियाँ लिखो
दोस्त खैर-बाह हो गये (बेतुल उत्साही)

6. हमको दुश्मन की निगाहों से ना देखा कीजे
प्यार ही प्यार हैं हम हम पे भरोसा कीजे

चँद यादों के सिवा हाथ कुछ आयेगा
इस तरह उम्र--गुरेजा का ना पीछा कीजे

रोशनी औरों के आँगन में गँवारा सही
कम से कम अपने घर में तो उजाला कीजे

क्या खबर कब वो चले आयेंगे मिलने के लिये
रोज पलकों पे नईं शम्मे जलाया कीजे (रईस अख्तर)


7. इक नज़र देख के हम जान गये
आप क्या चीज़ हैं पेहचान गये

फिर भी जिन्दा हूँ अज़ब बात है ये
कब से हो लेके मेरी ज़ान गये

तुम जो आये तो भरी महफिल में
दिल गये हाथ से ईमान गये

जिस जगह पर ना फरिश्ते पहुँचे
उस जगह आज के ईंसान गये (ईब्राहिम अश्क)

8. बहुत दिनों की बात है
फिज़ा को याद भी नहीं
ये बात आज की नहीं
बहुत दिनों की बात है

शबाब पर बहार थी
फिज़ा भी खुश गवार थी
नी जाने क्यूँ मचल पडा
किसी ने मुझको रोक कर
बडी अदा से टोककर
कहा लौट आइये
मेरी कसम ना जाइये

पर मुझे खबर ना थी
माहौल पर नज़र थी
ना जाने क्यूँ मचल पडा
मैं अपने घर से चल पडा

मैं शहर से फिर गया
खयाल था कि पा गया
उससे जो मुझसे दूर थी
मगर मेरी ज़रुर थी

और इक हसीँ शाम को
मैं चल पडा सलाम को
गली का रंग देख कर
नई तरंग देख कर
मुझे बडी खुशी हुई
मैं कुछ इसी खुशी में था
किसी ने झंकार कर कहा
पराये घर से जाइये
मेरी कसम ना आईये

वही हसीन शाम थी
बहार जिसके नाम है

चला हूँ घर छोडकर
ना जाने जाउँगा किधर
कोई नहीं जो टोककर
कोई नहीं जो रोककर
कहे कि लौट आईये
मेरी कसम ना जाईये

मेरी कसम ना जाईये……. (सलाम मछली शेहरी)

कहकशाँ
1. हमदम यही है
इज़्न--खिराम लेते हुये आसमां से हम,
हटकर चले हैं रहगुज़र--कारवां से हम,
क्योंकर हुआ है फ़ाश ज़माने पे क्या कहें,
वो राज़--दिल जो कह सके राज़दां से हम,
हमदम यही है रहगुज़र--यार--खुश-खिराम,
गुज़रे हैं लाख बार इसी कहकशां से हम,
क्या क्या हुआ है हम से जुनूं में पूछिये,
उलझे कभी ज़मीं से कभी आसमां से हम,
ठुकरा दिये हैं अक़्ल--खिराद के सनमकदे,
घबरा चुके हैं कशमकश--इम्तेहां से हम,
बख्शी हैं हम को इश्क़ ने वो जुर्रतेंमजाज़’,
डरते नहीं सियासत--अहल--जहां से हम, (मज़ाज)
(अनकही लाईनें बोल्ड इटेलिक में)
2. तुझ से रुख़सत की वो
तुझ से रुख़सत की वो शाम--अश्क़-अफ़्शां हाए हाए,
वो उदासी वो फ़िज़ा--गिरिया सामां हाए हाए,
यां कफ़--पा चूम लेने की भिंची सी आरज़ू,
वां बगल-गीरी का शरमाया सा अरमां हाए हाए,
वो मेरे होंठों पे कुछ कहने की हसरत वाये शौक़,
वो तेरी आँखों में कुछ सुनने का अरमां हाए हाए, (जोश मलीहाबादी)
3. तोड़कर अहद--करम नाआशना हो जाइये,
तोड़कर अहद--करम नाआशना हो जाइये,
बंदापरवर जाइये अच्छा ख़फ़ा हो जाइये,
राह में मिलिये कभी मुझ से तो अज़राह--सितम,
होंठ अपने काटकर फ़ौरन जुदा हो जाइये,
जी में आता है के उस शोख़--तग़ाफ़ुल केश से,
अब ना मिलिये फिर कभी और बेवफ़ा हो जाइये,
हाये रे बेइख़्तियारी ये तो सब कुछ हो मगर,
उस सरापानाज़ से क्यूंकर ख़फ़ा हो जाइये, (हसरत मोहनी)
4. चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है,
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है,
बाहज़ारां इज़्तिराब--सदहज़ारां इश्तियाक,
तुझसे वो पहले पहल दिल का लगाना याद है,
तुझसे मिलते ही वो कुछ बेबाक हो जाना मेरा,
और तेरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है,
खींच लेना वो मेरा पर्दे का कोना दफ़्फ़ातन,
और दुपट्टे से तेरा वो मुँह छिपाना याद है,
जानकर सोता तुझे वो क़सा--पाबोसी मेरा,
और तेरा ठुकरा के सर वो मुस्कुराना याद है,
तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़राह--लिहाज़,
हाल--दिल बातों ही बातों में जताना याद है,
जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना ना था,
सच कहो क्या तुम को भी वो कारखाना याद है,
ग़ैर की नज़रों से बचकर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़,
वो तेरा चोरीछिपे रातों को आना याद है,
गया गर वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्र--फ़िराक़,
वो तेरा रो-रो के मुझको भी रुलाना याद है,
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिये,
वो तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है,
देखना मुझको जो बर्गश्ता तो सौ सौ नाज़ से,
जब मना लेना तो फिर ख़ुद रूठ जाना याद है,
चोरी चोरी हम से तुम आकर मिले थे जिस जगह,
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है,
बेरुख़ी के साथ सुनाना दर्द--दिल की दास्तां,
और तेरा हाथों में वो कंगन घुमाना याद है,
वक़्त--रुख़सत अलविदा का लफ़्ज़ कहने के लिये,
वो तेरे सूखे लबों का थरथराना याद है,
बावजूद--इद्दा--इत्तक़ाहसरतमुझे,
आज तक अहद--हवस का ये फ़साना याद है, (हसरत मोहनी)
(अनकही लाईनें बोल्ड इटेलिक में)
5. नज़र वो है के
नज़र वो है के जो कौन--मकां के पार हो जाये,
मगर जब रू--ताबां पर पड़े बेकार हो जाये,
नज़र उस हुस्न पर ठहरे तो आख़िर किस तरह ठहरे,
कभी जो फूल बन जाये कभी रुख़सार हो जाये,
चला जाता हूं हंसता खेलता मौज--हवादिस से,
अगर आसानियां हों ज़िंदगी दुशवार हो जाये, (असगर गोन्डवी)
6. किस को आती है मसीहाई
किस को आती है मसीहाई किसे आवाज़ दूं,
बोल ख़ूंख़ार तनहाई किसे आवाज़ दूं,
चुप रहूं तो हर नफ़स ड़सता है नागन की तरह,
आह भरने में है रुसवाई किसे आवाज़ दूं,
उफ़ ख़ामोशी की ये आहें दिल को बरमाती हुईं,
उफ़ ये सन्नाटे की शहनाई किसे आवाज़ दूं, (जोश मलीहाबादी)
7. बोल इकतारे झन झन
बोल इकतारे झन झन झन झन,
कहकशां है मेरी सुंदन,
शाम की सुर्ख़ी मेरा कुंदन,
नूर का तड़का मेरी चिलमन,
तोड़ चुका हूं सारे बंधन,
पूरब पच्छम उत्तर दक्खन,
बोल इकतारे झन झन झन झन,
मेरे तन में गुलशन सबके,
मेरे मन में जोबन सबके,
मेरे घट में साजन सबके,
मेरी सूरत दर्शन सबके,
सबकी सूरत मेरा दर्शन,
बोल इकतारे झन झन झन झन,
सब की झोली मेरी खोली,
सब की टोली मेरी टोली,
सब की होली मेरी होली,
सब की बोली मेरी बोली,
सब का जीवन मेरा जीवन,
बोल इकतारे झन झन झन झन,
सब के काजल मेरे पारे,
सब की आँखें मेरे तारे,
सब की साँसें मेरे धारे,
सारे इंसां मेरे प्यारे,
सारी धरती मेरा आंगन,
बोल इकतारे झन झन झन झन, (जोश मलीहाबादी)
8. मुद्दत में वो फिर
मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात का आलम,
ख़ामोश अदाओं में वो जज़्बात का आलम,
अल्लाह रे वो शिद्दत--जज़्बात का आलम,
कुछ कह के वो भूली हुई हर बात का आलम,
आरिज़ से ढ़लकते हुए शबनम के वो क़तरे,
आँखों से झलकता हुआ बरसात का आलम,
वो नज़रों ही नज़रों में सवालात की दुनिया,
वो आँखों ही आँखों में जवाबात का आलम, (जोश मलीहाबादी)
9. रोशन जमाल--यार से है
रोशन जमाल--यार से है अन्जुमन तमाम,
दहका हुआ है आतिश--गुल से चमन तमाम,
हैरत ग़ुरूर--हुस्न से शोखी से इज़्तराब,
दिल ने भी तेरे सीख लिये हैं चलन तमाम,
अल्लाह रे जिस्म--यार की खूबी के ख़ुद--ख़ुद,
रंगीनियों में ड़ूब गया पैरहन तमाम,
देखो तो चश्म--यार की जादूनिगाहियां,
बेहोश इक नज़र में हुई अंजुमन तमाम,
शिरीनी--नसीम है सोज़--ग़ुदाज़--मीर,
हसरततेरे सुख़न पे है रख़्स--सुख़न तमाम, (हसरत मोहनी)
(अनकही लाईनें बोल्ड इटेलिक में)
10. बोल इकतारे झन झन
बोल इकतारे झन झन झन झन,
काहकशां है मेरी सुंदन,
शाम की सुर्ख़ी मेरा कुंदन,
नूर का तड़का मेरी चिलमन,
तोड़ चुका हूं सारे बंधन,
पूरब पच्छम उत्तर दक्खन,
बोल इकतारे झन झन झन झन,
मेरे तन में गुलशन सबके,
मेरे मन में जोबन सबके,
मेरे घट में साजन सबके,
मेरी सूरत दर्शन सबके,
सबकी सूरत मेरा दर्शन,
बोल इकतारे झन झन झन झन,
सब की झोली मेरी खोली,
सब की टोली मेरी टोली,
सब की होली मेरी होली,
सब की बोली मेरी बोली,
सब का जीवन मेरा जीवन,
बोल इकतारे झन झन झन झन,
सब के काजल मेरे पारे,
सब की आँखें मेरे तारे,
सब की साँसें मेरे धारे,
सारे इंसां मेरे प्यारे,
सारी धरती मेरा आंगन,
बोल इकतारे झन झन झन झन, (जोश मलीहाबादी)

लेटेस्ट
1. ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो,
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी।
मग़र मुझको लौटा दो बचपन का सावन,
वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी।
मोहल्ले की सबसे निशानी पुरानी,
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी,
वो नानी की बातों में परियों का डेरा,
वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा,
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई,
वो छोटी-सी रातें वो लम्बी कहानी।
कड़ी धूप में अपने घर से निकलना
वो चिड़िया, वो बुलबुल, वो तितली पकड़ना,
वो गुड़िया की शादी पे लड़ना-झगड़ना,
वो झूलों से गिरना, वो गिर के सँभलना,
वो पीतल के छल्लों के प्यारे-से तोहफ़े,
वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी।
कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जाना
घरौंदे बनाना, बना के मिटाना,
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी,
वो ख़्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी,
दुनिया का ग़म था, रिश्तों का बंधन,
बड़ी खूबसूरत थी वो ज़िन्दगानी।
2. शायद मैं जिन्दगी की सहर
शायद मैं जिन्दगी की सहर ले के गया,
कातिल को आज अपने ही घर ले के गया,
ता उम्र धुंद्ता रहा मंज़िल मैं इश्क की,
अंजाम ये के गरदे सफर ले के गया,
नश्तर है मेरे हाथ में कंधों पे मयकदा,
लो मैं इलाजे दर्द--जिगर ले के गया,
फाकिरसनम मयकदे में आता मैं लौटकर,
इक ज़ख्म भर गया था इधर ले के गया,
3. जिन्दगी तुझको जिया है कोई अफ़सोस नहीं
जिन्दगी तुझको जिया है कोई अफ़सोस नहीं,
ज़हर ख़ुद मैंने पिया है कोई अफ़सोस नहीं,
मैंने मुजरिम को भी मुजरिम कहा दुनिया में,
बस यही जुर्म किया है कोई अफ़सोस नहीं,
मेरी किस्मत में जो लिखे थे उन्ही काँटों से,
दिल के ज़ख्मों को सीया है कोई अफ़सोस नहीं,
अब गिरे संग के शीशों की हूँ बारिशफाकिर’,
अब कफ़न ओढ़ लिया है कोई अफ़सोस नहीं,
4. उस मोड से शुरु करें फिर ये जिंदगी
उस मोड से शुरु करें फिर ये जिंदगी
हर शह जहाँ हसीन थी हम तुम थे अजनबी
लेकर चले चले हम जिन्हें जन्नत के ख्वाब थे
फूलों के ख्वाब थे वो मोहब्बत के ख्वाब थे
लेकिन कहाँ है इनमें पहले सी दिलकशी

रहते थे हम हसीन खयालों की भीड में
उलझे हुये आज सवालों की भीड में
आने लगी है याद वो फुरसत की हर घडी

शायद ये वक्त हम से कोई चाल चल गया
रिश्ता वफ़ा का और ही रंगों में ढ़ल गया
अश्कों की चाँदनी से बेहतर वो धूप थी

5. जिस मोड़ पर किए थे
जिस मोड़ पर किए थे हम इन्तेजार बरसों,
उससे लिपट के रोये दीवाना-वार बरसों,
तुम गुलसितां से आए ज़िक्र खिज़ां हिलाए,
हमने कफ़स में देखी फासले बहार बरसों,
होती रही है यूं तो बरसात आसुओं की,
उठते रहे हैं फिर भी दिल से गुबार बरसों,
वो संग--दिल था कोई बेगाना--वफ़ा था,
करते रहें है जिसका हम इंतजार बरसों,
6. बड़ी हसीन रात थी
चराग़--आफ़ताब ग़ुम बड़ी हसीन रात थी
शबाब की नक़ाब गुम बड़ी हसीन रात थी।
मुझे पिला रहे थे वो कि ख़ुद ही शमाँ बुझ गई
गिलास ग़ुम,शराब ग़ुम बड़ी हसीन रात थी।
लिखा था जिस किताब कि इश्क़ तो हराम है
हुई वही किताब ग़ुम बड़ी हसीन रात थी।
लबों से लब जो मिल गए,लबों से लब ही सिल गए
सवाल ग़ुम जवाब ग़ुम बड़ी हसींन रीत थी।
7. दिल के दिवारो दर पे क्या देखा

दिल के दिवारो दर पे क्या देखा
बस तेरा नाम ही लिका देखा

तेरी आँखों में हमने क्या देखा
कभी क़ातिल कभी ख़ुदा देखा

अपनी सूरत लगी पराई सी
जब कभी हमने आईना देखा

हाये अँदाज़ तेरे रुकने का
वक्त को भी रुका रुका देखा

तेरे जाने में और आने में
हमने सदियों का फासला देखा

फिर आया खयाल जन्नत का
जब तेरे घर का रास्ता देखा
8. ला पिला दे शराब साकी
ढल गया आफताब साकी,
ला पिला दे शराब साकी,
या सुराही लगा मेरे मुँह से,
या उलट दे नकाब साकी,
मैकदा छोड़ कर कहाँ जाऊं,
है ज़माना ख़राब साकी,
जाम भर दे गुनाहगारों के,
ये भी है इक सवाब साकी,
आज पीने दे और पीने दे,
कल करेंगे हिसाब साकी,
ईकोस
1. हज़ूर आपका भी एह्तराम करता चलूं
हज़ूर आपका भी एह्तराम करता चलूं..
इधर से गुज़रा था, सोचा सलाम करता चलूं..
निगाह--दिल की येही आखिरी तमन्ना है..
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साये मे शाम करता चलूं..
हज़ूर आपका भी एह्तराम करता चलूं..
उन्हे येह ज़िद है कि मुझे देखकर किसी और को ना देख..
मेरा येह शौक, कि सबसे कलाम करता चलूं..
इधर से गुज़रा था.. सोचा सलाम करता चलूं..
ये मेरे ख्वाबों की दुनिया नहीं, सही..
अब गया हूं तो दो दिन कयाम करता चलूं..
हज़ूर आपका भी एह्तराम करता चलूं..
इधर से गुज़रा था.. सोचा सलाम करता चलूं..
2. सफर में धुप तो होगी जो चल सको तो चलो
सफर में धुप तो होगी जो चल सको तो चलो,
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो,
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती है,
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो,
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता,
मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो,
यही है जिन्दगी कुछ ख्वाब चाँद उम्मीदें,
इन्ही खिलोनों से तुम भी बहल सको तो चलो,
3. मै चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले
मै चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले
उसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले
किताब--माज़ी के औराक़ उलट के देख ज़रा औराक़ = pages
ना जाने कौन सा सफ़हा मुड़ा हुआ निकले सफ़हा = page
जो देखने में बहुत ही करीब लगता है
उसी के बारे में सोचो तो फ़ासला निकले
4. देने वाले मुझे मौजों की रवानी दे दे
देने वाले मुझे मौजों की रवानी दे दे,
फिर से एक बार मुझे मेरी जवानी दे दे,
अब्र तो जाम हो साकी हो मेरे पहलू में,
कोई तो शाम मुझे ऐसी सुहानी दे दे,
नशा जाए मुझे तेरी जवानी की क़सम,
तू अगर जाम में भर के मुझे पानी दे दे,
हर जवान दिल मेरे अफसाने को दोहराता रहे,
हश्र तक ख़त्म हो ऐसी कहानी दे दे,
5. फिर उसी राहगुज़र पर शायद
फिर उसी राहगुज़र पर शायद,
हम कभी मिल सकें मगर शायद,
जान पहचान से क्या होगा,
फिर भी दोस्त गौर कर शायद,
मुन्तज़िर जिन के हम रहे उन को,
मिल गए और हमसफ़र शायद,
जो भी बिछडे हैं कब मिले हैंफ़र्ज़”,
फिर भी तू इंतज़ार कर शायद,
6. ऐसा लगता है जिन्दगी तुम हो
ऐसा लगता है जिन्दगी तुम हो,
अजनबी कैसे अजनबी तुम हो,
अब कोई आरजू नहीं बाकी,
जुस्तजू मेरी आखरी तुम हो,
मैं ज़मीन पर घना अँधेरा हूँ,
आसमानों की चांदनी तुम हो,
दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें,
किस ज़माने के आदमी तुम हो,
7. देने वाले मुझे मौजों की रवानी दे दे
देने वाले मुझे मौजों की रवानी दे दे,
फिर से एक बार मुझे मेरी जवानी दे दे,
अब्र तो जाम हो साकी हो मेरे पहलू में,
कोई तो शाम मुझे ऐसी सुहानी दे दे,
नशा जाए मुझे तेरी जवानी की क़सम,
तू अगर जाम में भर के मुझे पानी दे दे,
हर जवान दिल मेरे अफसाने को दोहराता रहे,
हश्र तक ख़त्म हो ऐसी कहानी दे दे,
बियॉन्ड टाईम
1. अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दे
अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दे।
तेरा मुजरिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे।
नए दोस्त मैं समझूँगा तुझे भी अपना
पहले माज़ी का कोई ज़ख़्म तो भर जाने दे।
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी
कोई आँसू मेरे दामन पर बिखर जाने दे।
ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको
सोचता हूँ कि कहूँ तुझसे मगर जाने दे। (नजीर बाक़री)
2. नींद से आँख खुली है

नींद से आँख खुली है अभी देखा क्या है
देख लेना अभी कुछ देर में दुनिया क्या है

बाँध रखा किसी सोच ने घर से हमको
वरना अपना दरो दिवार से रिश्ता क्या है

रेत की ईंट की पत्थर की हों या मिट्टी की
किसी दिवार के साये का भरोसा क्या है

अपनी दानिश्त में समझाये कोई दुनिया शाहिद
वरना हाथों में लकीरों के अलावा क्या है शाहिद बाकरी

3. अपनी आग को जिन्दा रखना कितना मुश्किल है

अपनी आग को जिन्दा रखना कितना मुश्किल है
पत्थर बीच आईना रखना कितना मुश्किल है

कितना आसान है तस्वीर बनाना औरों की
खुद को पसे- आईना रखना कितना मुश्किल है

तुमने मंदिर देखे होंगे ये मेरा आँगन है
इक दिया भी जलता रखना कितना मुश्किल है

चुल्लु में हो दर्द का दरिया ध्यान में उसके होंठ
यूँ भी खुद को प्यासा रखना कितना मुश्किल है इशरत आफरीन

4. लब- खामोश से इज़हारे तम्मना चाहे

लब- खामोश से इज़हारे तम्मना चाहे
बात करने को भी तस्वीर का लहजा चाहे

तू चले साथ तो आहट भी आये अपनी
दरमियाँ भी ना हो यूँ तुझे तन्हाँ चाहे

ख्वाब में रोये तो एहसास हो सैराबी का
रेत पर सोये मगर आँख में दरिया चाहे

ऐसे त़ारीक़ भी देखे हैं मुज्जफर हमने
गर्क होने के लिये भी सहारा चाहे मुज्जफर वारसी


5. लोग हर मोड पे रुक रुक के

लोग हर मोड पे रुक रुक के संभलते क्यूँ हैं
इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यूँ हैं

मैं ना जुगनु हूँ दिया हूँ ना तारा हूँ
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यूँ हैं
नींद से मेरा ताल्लुक ही नहीं बरसों से
ख्वाब आके मेरी चाहत पे टहलते क्यूँ हैं

मोड होता है जवानी का संभलने के लिये
और सभी लोग यहीं आके फिसलते क्यूँ हैं राहत ईन्दौरी


6. मेरा दिल भी शौक से तोडो एक तजरुबा और सही

मेरा दिल भी शौक से तोडो एक तजरुबा और सही
लाख खिलौने तोड चुके हो एक खिलौना और सही

रात है ग़म की आज बुझा दो जलता हुआ हर एक चिराग़
दिल में अँधेरा हो ही चुका है घर में अँधेरा और सही

दम है निकलता इक आशिक का भीड है आकर देक तो लो
लाख तमाशे देखे होंगे एक नज़ारा और सही

खँजर लेकर सोंचते क्या हो कत्लमुरादभी कर डालो
दाग हैं सौ दामन पे तुम्हारे इक इज़ाफा और सही मुराद लखनवी

7. झूठी सच्ची आस पे जीना

झूठी सच्ची आस पे जीना कब तक आखिर आखिर कब तक
मय की जगह खून--दिल पीना कब तक आखिर आखिर कब तक

सोचा है अब पार उतरेंगे या टकरा कर डूब मरेंगे
तूफानों की ज़द पे सफीना कब तक आखिर आखिर कब तक

एक महीने के वादे पर एक साल गुजारा फिर भी ना आये
वादे का ये एक महीना कब तक आखिर आखिर कब तक

सामने दुनिया भर के गम हैं और इधर इक तन्हा हम हैं
सैकडों पत्थर इक आईना कब तक आखिर आखिर कब तक कशिफ ईन्दौरी

8. सारे बदन का खून

सारे बदन का खून पसीने में जल गया
इतना चले कि जिस्म हमारा पिघल गया

चलते ही गिन रहे थे मुसीबत के रात दिन
दम लेने हम जो बैठ गये दम निकल गया

अच्छा हुआ जो राह में ठोकर लगी हमें
हम गिर पडे तो सारा जमाना संभल गया

वहशत में कोई साथ हमारा दे सका
दामन की फिक्र की तो गरेबां निकल गया मुहम्मद दुर्रानी

9. सामने है जो उसे लोग

सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
जिसको देखा नहीं उसको खुदा कहते हैं

जिन्दगी को भी सिला कहते हैं कहने वाले
जीने वाले तो गुनाहों की सजा कहते हैं

फासले उम्र के कुछ और बढा देती है
जाने क्यूँ लोग उसे फिर भी दवा कहते हैं

चंद मासूम से पत्तों का लहू हैफाकिर
जिसको महबूब के हाथों की हीना कहते हैं सुदर्शन फाकिर

10. ये करें वो करें वो करें

ये करें वो करें वो करें ऐसा करें वैसा करें
जिन्दगी दो दिन की है दो दिन में क्या क्या करें

जी में आता है कि दें परदे से परदे का जवाब
हम से वो परदा करें दुनिया से हम परदा करें

सुन रहा हूँ कुछ लुटेरे गये हैं शहर में
आप जल्दी बन्द अपने घर का दरवाजा करें

इस पुरानी बे वफा दुनिया का रोना कब तलक
आईये मिल जुल के इक दुनिया नई पैदा करें नज़ीर बनारसी