Thursday, October 8, 2009

आहार की विसंगतियाँ

आहार की विसंगतियॉं

आहार की विसंगतियॉं क्या है ?

किसी भी प्राणी के लिए आहार सेवन निर्णायक होता है । जैसा कि हम देखते हैं छोटे पशु से लेकर मनुष्य तक जीवित रहने के लिए आहार आवश्यक है । निम्न कोटि के प्राणियों के लिए आहार एक ईंधन का कार्य करते हैं, तो मनुष्य के लिए आहार अविश्वसनीय स्वाद और रूचि का स्त्रोत होते हैं ।

मानव-जीवनाधार के लिए आवश्यक आहार के सेवन पर कुछ जटिल घटक प्रभावित करते हैं ।

ये प्रमुख घटक है -

* इसका स्वाद (कितनी आसानी या तकलीफ अथवा इन आहारों का त्याग करते हैं)

* इसकी कैलोरी का मापदण्ड (शरीर भार में कितनी उपादेयता है)

इन घटकों के आधार पर आहार सेवन की कुछ समस्याएँ उत्पन होती है । इनका अधोलिखित वर्गीकरण किया जाता है -

* एनोरेक्जिया नर्वोसा

* बुलिमिया नर्वोसा

* भूख न लगना किसी के द्वारा अत्याधिक या अत्यल्प आहार सेवन करना

* मोटापे से परेशान होकर दुबले होने के लिए आहार त्याग करना

* अत्याधिक मोटा होने पर उसकी परवाह न करना और इससे अन्य समस्याएँ होना

* वसा, ग्राम, कैलोरी और आहार से चिंतित होना

आहार की अनियमितता से क्या खतरे हो सकते हैं ?

आहार की अनियमितता से किसी भी आयु में समस्याएँ उत्पन हो सकती हैं । प्रायः 12-30 वर्ष की आयु के युवा अधिक प्रभावित होते हैं और यह पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक होती है ।

किशोरावस्था में आहार की अनियमितता अधिक होती है । इसका कारण मिडिया का बढ़ता प्रभाव, कॉलेज का जीवन, मित्रगण, किशोरावस्था, हार्मोन का परिवर्तन, परिपक्वता का अभाव और अपनी पहचान बनाने या स्वतंत्रता के जैसे कारणों से ये किशोर जीवन के अस्वस्थ्यकर मार्गों को अपना लेते हैं ।

मानसिक तनाव को भी आहार की अनियमितता का एक घटक माना जाता है ।

इसके अतिरिक्त, मिडिया द्वारा दर्शाये जाने वाले भार के प्रति चेतना और अकृत्रिम सौंदर्य उपायों की बाढ़, सेलेब्रिटी और बाहरी सुन्दरता के तुरन्त उपायों के कारण भी युवा बच्चों में आहार की अनियमितताओं की एक खतरनाक लहर-सी चल पड़ी है ।

आहार की अनियमितताएँ किसी व्यक्ति के आहार की समस्या लक्षण नहीं होती, किन्तु ये लक्षण उसके जीवन में छिपी किसी बड़ी समस्या को दर्शाते हैं ।

एनोरेक्सिया नर्वोसा

दुबले होने की इच्छा से अथवा मोटे होने के भय से जो लोग अत्याधिक डायटिंग करते हैं और दुबले हो जाते हैं, उनमें यह एनीरेक्सिया होता है ।

ये लोग मानक शरीर भार के अथवा न्यूनतम भार होने पर भी स्वयं को मोटा मानते हैं ।

ये लोग तीव्र रूप से कुपोषित होने पर शरीर के कुछ मोटे भागों का भार कम करना चाहते हैं । इस प्रयास में वे आहार और कैलोरी का त्याग करते रहते हैं और सम्यक चिकित्सा न पाने पर इसके परिणाम स्वरूप मृत्यु हो जाती है ।

एनोरेक्सिक के कुछ लक्षण

एनोरेक्सिक परिपूर्णता का प्रयत्न करते हैं । इसके लिए वे सम्यक्‌ और अतार्किक तरीके अपनाते हैं और उच्च स्तर प्राप्ति की कल्पना करने पर हार जाते हैं ।

वे अपनी आवश्यकताओं से अधिक महत्व दूसरों की आवश्यकताओं को देते हैं । इनमें आत्मविश्वास बहुत कम होता है । वे दूसरों की स्वीकृति पर आधारित होते हैं और इसके लिए वे कुछ भी कर सकते हैं ।

परिपूर्णत्व के व्यवहार के कारण ये एनोरेक्सिक अपने जीवन की शैली, आहार और भार का नियंत्रण स्वयं करने में विश्वास रखते हैं । क्योंकि आसपास की घटनाओं से सचेत रहते हैं, इसलिए वे अपने शरीर सौष्टव (फिगर) का बहुत ध्यान रखते हैं ।

वे अपने ध्येय की पूर्ति की जॉंच प्रतिदिन सुबह और दिन में कई बार करते रहते हैं ।

शरीर भार कम होने पर वे अपने आपको शक्तिवान समझते हैं और इससे अपनी अवरोधित भावनाओं और संवेदना को उजागर करते हैं । इनके लिए वास्तविकता का सामना करने की अपेक्षा डायट आसान काम होता है ।

एनोरेक्सिक इतने आत्मसम्माननीय होते हैं कि वे यह महसूस करते हैं कि आहार उनके उपयोगी नहीं है । इस कारण वे आहार का त्याग कर अपनी त्रुटि की सजा पाकर अपने अकदामिक कार्यों में विफल होते हैं । ये लोग अक्सर दूसरों के लिए खाना बनाते हैं किन्तु स्वयं सेवन नहीं करते ।

एनोरेक्सिक भूख को कभी स्वीकार नहीं करते । वे अन्यों के आहार सेवन के आग्रह से बचना चाहते हैं ।

इनकी बड़ी समस्या है इन्हें भरती करके इनकी समस्या के लिए इनकी सहायता करना है । क्योकि एक बार ऐसा करने से प्रभावकारी तरीके से इनकी मनोवैज्ञानिक पोषक और चिकित्सा सहायता की जा सकती है ।

प्रमुख सावधानी के लक्षणों को जॉंचे

* अप्रत्यक्ष कारणों से अचानक भार में कमी होना

* एकाकीपन और अचानक अन्तर्मुखी होना

* प्रत्यक्ष थकान होने पर भी व्यायाम करना, वैसे जल्दी थक जाना

* आहार, कैलोरी, विधि और डायट फूड के प्रति कृत्रिम अलहेलना होना

* भोजन की अप्रसारित आदतें जैसे आहार छोटे-छोटे टुकड़ों में बॉंटना, आहार के लिए अत्यन्त पसंदगी

* अत्यल्प होने पर भी बहुत वसा की शिकायत करना

* दूसरों के लिए पकाना, पर स्वयं न खाना

* भोजन के प्रति शर्माना या अपराध बोध होना

* विषाद, चिड़चिड़ापन और मूड परिवर्तन

* मासिक धर्म की अनियमितता और अनार्तव (मासिक धर्म नहीं होना)

* शरीर भार को छिपाने के लिए ढीले (बैगी) कपड़े पहनना और मित्रों या पालकों के साथ रूम बदलने की आदत होना

* बार-बार भार जॉंचना

* चक्कर और मूर्छा का वृत्तान्त

* सार्वजनिक स्थल पर अथवा होटल में खाने से कतराना

* परिपूर्णत्व को दर्शाने का अनौचित्य दर्शाना

* आहार त्याग कर स्वयं को उसके योग्य दर्शाना ।

एनोरेक्सिया के उपद्रव

* अत्याधिक थकान से पेशियों की प्रगाढ़ता में कमी

* कुपोषणजन्य अनार्तवता और वंध्यता

* मर्म अवयवों में रक्तसंचार की कमी से मूर्छा और चक्कर

* हृदय के कार्य में बाधा के कारण अनियमित हृदय गति । पोटाशियम की कमी के कारण हृदयगति रुक कर मृत्यु

* रक्तसंचार की कमी के कारण हाथ पैरों में सुनता

* आहार अवधि की अनियमितता से आध्मान, कब्ज

* पैथोलोजिकल फैक्चर, हड्डियों का पतला और भंगूर होना

* इलेक्ट्रोलाइट के असंतुलन से गुर्दे और लीवर खराब होना

* मानसिक अवसाद, विषाद और अन्य मनोवैज्ञानिक समस्याएँ

बुलिमिया नर्वोसा

यह तेज भूख लगने पर बार बार आहार सेवन को चरिथार्थ करता है और इसमें रोगी अनैच्छिक कैलोरी से छुटकारा सेवन से पाने का प्रयत्न करता है । यह आदत भी सभी प्रकार के आहारों से होती है । ये अत्यधिक खाते है और उसका त्याग रेचन से करते हैं ।

रेचन के लिए रोगी वमन या मृदु विरेचक का अनावश्यक उपयोग, भूखे रहकर मूत्रल दवाएँ लेक, डायट पिल्स या एनिमा का उपयोग करते हैं ।

बुलेमिक (क्षुधातिशय) के रोगियों में एनोक्सिया की तरह हठधर्मिता कम होती है । ये रोगी दूसरों के अनुमोदन पर आधारित होते हैं ।

वे आहार सेवन को अपना आराम समझते हैं । अपनी संवेदनाओं का वे स्वयं नियंत्रण नहीं कर पाते ।

सौभाग्यवश, एनोरेक्सिक के विपरीत वे अपनी समस्याओं को समझते हैं और इसके लिए किसी प्रकार की सहायता भी स्वीकारते हैं ।

इन लक्षणों को जॉंचे

* खूब खाने की आदतें और छुपकर खाने की आदतें

* खाने के बाद बार-बार बाथरूम जाना

* बिना किसी कारण वमन करना और इसके लिए चिकित्सा सहायता लेने से इनकार करना

* रेचक, डायटमिल या मूत्रल औषध का अतिशयोक्त उपयोग का प्रमाण

* 6-8 किलो भार तक में कमी या अधिकता होना

* अधिक दबाव के कारण मूँह, नाक या गुदा से रक्त का रिसाव होना

* अत्याधिक व्यायाम का अधिमान होना । थकान और पेशीय दुर्बलता होना

* अनिश्चित धार्मिक कारणों से व्रत पालन करना या व्यर्थ में व्रत रखना । आहार सेवन पर पर्याप्त नियंत्रण न होने का भय होना

* शरीर भार की फेर बदल से मूड में परिवर्तन या विषाद होना

* आहार सेवन से स्वयं की आलोचना करना और ख्याति प्राप्त व्यक्तियों से निरर्थक तुलना करना

* बार बार वमन के कारण दॉंतों की सड़न, जीभ या गला पकना

* रेस्टोरेंट के आहार को नियमित भोजन, सामाजिक कार्यों को जहॉं भोजन करना हो - ऐसे स्थलों को टालना ।

* रेचन और वमन के प्रयोग से इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन होना

* पेप्टिक अल्सर या पेंक्रियाटाइटिस होना

* हृदयाघात और मृत्यु

क्या इन आहार सेवन की विसंगतियों को ठीक कर सकते हैं

हॉं, एक बार रोगी स्वीकृति होने पर इन्हें ठीक कर सकते हैं । इसके लिए अधोलिखित उपाय करने पड़ते हैं -

एनोरेक्सिक के लिए पहले उनका सामान्य भार होना चाहिए । उनकी आहार सेवन की की आदतों के अध्ययन के लिए अस्पतालीकरण जरूरी है । फिर उनके शरीर की क्षति और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन की जानकारी के आधार पर चिकित्सा दी जाती है ।

एक बार घर जाने पर पोषण विशेषज्ञ इन्हें आदर्श शरीर भार होने और उनकी आहार सेवन की इच्छा सामान्य होने तक योजना बनाता है ।

समस्या के मूल तक जाने के लिए काउंसिलिंग जरूरी है । क्योंकि ऐसे रोगी में आहार से समस्या नहीं होती, इनमें भीतरी संवेदना की समस्या होती है । रोगी और परिवार के सदस्यों की काउंसिलिंग करने से समस्या समाप्त हो सकती है और रोगी ठीक हो सकता है ।

भूख न लगना

दो सप्ताह से अधिक समय तक भूख न लगने पर यह एक महत्वपूर्ण लक्षण हो जाता है । इससे थकान और स्वाद में परिवर्तन के साथ शरीर में कहीं भी दर्द होने लगता है ।

भूख न लगने से क्या लक्षित होता है

इन्फेक्शन: लगभग सभी इन्फेक्शन में भूख नहीं लगती । चाहे किसी भी प्रकार का इन्फेक्शन - साधारण जुकाम, सर्दी, फ्लू या गंभीर टी.बी., हिपेटाइटिस, आंतों का इन्फेक्शन हो, भूख नहीं लगती है ।

अन्य अवयवों की खराबी: थायरॉड, हृदय, फेफड़े या लीवर के रोग होने पर भी भूख नहीं लगती है ।

कैंसर: दुर्भाग्यवश, कैंसर का प्रथम लक्षण भी भूख कम लगना रहा है । इसके साथ स्वाद में परिवर्तन होता है । भूख न लगने से भार में कमी होती है । अन्य इन्फेक्शन की जानकारी के लिए पूरी परीक्षा करना चाहिए ।

दवाएँ: कुछेक एंटीबायोटिक स्वाद अंकुरों में अवरोध उत्प कर देते हैं । इससे आंत तक भोजन देर से पहुँचता है और पेट भरा होने का अहसास होता है और भूख नहीं लगती ।

कुछ दवाएँ जैसे एंकेटामाईन जो भार कम करने के लिए दी जाती है, इनके उपयोग से भी भूख कम लगती है । दर्द निवारक दवाएँ - जो आर्थाइटिस में देते हैं, उससे आमाशय में जलन होकर गेस्ट्राइटिस और वमन होने से भी आहार के प्रति आसक्ति कम हो जाती है । डिजिटलेटिस और मूत्रल दवाएँ भी क्षुधा नाशक हैं ।

विटामिन की कमी: जिंक, विटामिन सी, बी कॉम्प्लेक्स से भी स्वाद अंकुर को हानि होकर क्षुधा नाश होता है ।

नित्य कर्म में परिवर्तन: नये व्यायाम, कोठोर डायटिंग या आहार परिवर्तन होने पर शरीर को उसके अनुरूप होने में समय लगता है और भूख में कमी होती है ।

मानसिक तनाव: मानसिक स्वास्थ्य का शरीर की क्रियाओं और आहार की इच्छा पर सीधा प्रभाव होता है । निश्चित समयावधि में कार्य समाप्ति तनाव से भी भूख नहीं लगती । विषाद में कुछ तो कम खाते हैं किन्तु कुछ अधिक खाने लग जाते हैं ।

आहार की विसंगति: आहार विसंगति जैसे एनोरेक्सिया या बुलिमिया में लक्षित क्षुधा नाश के साथ उसके उपद्रव भी होते हैं ।

इसका उपाय क्या है ?

क्षुधानाश एक लक्षण है रोग नहीं है । इसलिए यह निश्चय करें कि कारण क्या है ? इसके कुछ कारण ये हैं -

सामान्य भूख की जानकारी - स्वस्थ आहार सेवन की आदत है विभिन प्रकार के आहार सेवन करें, न कि इसमें विशेष प्रकार के ही आहार का सेवन करें । यदि कोई व्यक्ति सामान्य आहार सेवन से सन्तुलित भार का नियोजन करता है तो वह सामान्य है ।

दवाओं की समालोचना - अपने डॉक्टर से किसी प्रकार दवा सेवन की जानकारी लेंवे । सीधे दवा की दुकान से खरीदी दवा या प्रेस्क्राइब्ड दवा से भी क्षुधानाश हो सकता है । समस्या के समाधान के लिए ऐसी दवा की एकान्तर दवा लेवें ।

अल्पाहार लेंवे - आल्पाहार सेवन से आपका पाचन सही होता है और खाने की इच्छा जागृत होती है । इससे शरीर भार भी संतुलित रहता है । अपचन कम होता है ।

विटामिन पूरक - विटामिन और जिंक की कमी से क्षुधा नाश होता है । इन पूरकों से स्वादांकुर का स्वास्थ्य ठीक होता है और भूख की इच्छा होती है । स्वयं के निर्णय से 8-10 से अधिक विटामिन न लेंवे ।

आप जैसा चाहे खायें - यदि भोजन में चाव न हो तो व्यंजन बदल कर देंखे । ऐसे आहार को खोजें जिसमें आपकी रूचि हो और उसकी सेवन करें । इससे आप गलत आहार सेवन की आदत से बच पाते हैं । भूख न लगने पर भोजन बन्द न करें ।

अधिक जलपान करें - निर्जलीकरण से भी भूख कम लगती है और पाचन बराबर नहीं होता । प्रतिदिन कम से कम 6-8 गिलास पानी पीयें ।

विश्राम -कई बार मानसिक तनाव कम होते ही भूख लगने लगती है । इसलिए तनाव कम करना जरूरी है । तनाव न बढ़ने देंवे ताकि आपका स्वस्थ्य खराब न होने लगे । लंबी अवधि तक क्षुधानाश होने पर आहार विसंगति से मृत्यु तक हो सकती है ।