Friday, April 22, 2022


छोटे धान यानि मिलेट पर नई पुस्तक

 

Wednesday, April 7, 2021


 

डॉ. महेश शर्मा हैदराबाद के एक प्रमुख आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं, जिन्हें भारतीय चिकित्सा पद्धति में चिकित्सा पद्धति, अनुसंधान, शिक्षण, प्रशिक्षण और औषधि निर्माण में चार दशकों से अधिक का अनुभव है। आप एमडी (आयुर्वेद) है और 1970 में उस्मानिया विश्वविद्यालय से संबद्ध सरकारी आयुर्वेदिक कॉलेज से - बीएएमएस (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) हैं।

पिछले 40 वर्षों में, - एक निजी चिकित्सक, और दवा कंपनियों के सलाहकार के रूप में उन्होंने विभिन्न क्षमताओं में अपनी सेवायें दी है। आप चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में नैतिकता समितियों के सदस्य सचिव रह चुके हैं। डॉ. शर्मा सामाजिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक और परोपकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे हैं वे एक लेखक, वक्ता और आयुर्वेदिक प्रणाली के प्रोफेशनल हैं। उन्हें अमेरिका स्थित अमेरिकी स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान सहित भारत और विदेश में आयुर्वेद के वक्ता के रूप में आमंत्रित किया जा चुका है।

यह डॉ. महेश शर्मा की रचित तीसरी पुस्तक है । यह नोशन प्रेस द्वारा प्रकाशित है और उनकी वेबसाईट से प्राप्त की जा सकती है। इसके अतिरिक्त एमॉजान, फ्लिपकार्ट, रैप्रोईंडिया पर भी उपलब्ध है।


Dr Mahesh Sharma  MD (Ayurveda) is a leading Ayurvedic practitioner of Hyderabad, having experience of over four decades in medical practice, research, teaching, training and pharmaceutical manufacturing in the Indian system of Ayurvedic medicine. 

In the past 40 years, he has served in various capacities – as a private practitioner, as medical officer in various dispensaries and hospitals and as a consultant to pharmaceutical companies. He has been a member secretary of medical Research ethics’ committees.

Dr Sharma is an active participant in social, educational, cultural, and philanthropic activities. He is a prolific writer, public speaker. He has been invited as speaker in India and abroad, including the US-based American Health Research Institute. 

This is book is Published by Notion Press. It is the English version of earlier published book on Spices in Hindi. This Book is available in different online platforms lie Kindle, Amazon, Flipkart, Repro india and Notion Press.

 

आओ, मसालो को पहचानें

डॉ. महेश शर्मा हैदराबाद के एक प्रमुख आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं, जिन्हें भारतीय चिकित्सा पद्धति में चिकित्सा पद्धति, अनुसंधान, शिक्षण, प्रशिक्षण और औषधि निर्माण में चार दशकों से अधिक का अनुभव है। आप एमडी (आयुर्वेद) है 

पिछले 40 वर्षों में, - एक निजी प्रोफेशनल के रूप में, विभिन्न औषधालयों और अस्पतालों में चिकित्सा अधिकारी  और दवा कंपनियों के सलाहकार के रूप में उन्होंने विभिन्न क्षमताओं में जनसेवा की है। आप चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में  नैतिकता समितियों के सदस्य सचिव रह चुके हैं।

डॉ. शर्मा सामाजिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक  गतिविधियों में सक्रिय रहे हैं । वे एक विपुल लेखक, सार्वजनिक वक्ता हैं। उन्हें अमेरिका स्थित अमेरिकी स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान सहित भारत और विदेश में आयुर्वेद के वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया है।

एक लेखक के रुप में यह पहला प्रयास है। यह नोशन प्रेस द्वारा प्रकाशित पुस्तक है और एमॉजान, फ्लिपकार्ट,रेप्रो ईंडिया और किंडल पर उपलब्ध है।

 

Sunday, July 3, 2011

क्लिनिकल ट्रायल या क्लीनिकल रिसर्च

कुछ दिनों से क्लिनिकल ट्रायल या क्लीनिकल रिसर्च उद्योग का विषय चर्चा में है।आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में पिडुगुराला कस्बे में एक औषधि कंपनी द्वारा गरीब महिलाओं को इलाज के बहाने हैदराबाद ले जाया गया,दवा दी गई और रक्त के नमूने लिए गए।दवा लेने के थोड़ी ही देर में महिलाओं को सिरदर्द, पैरों में सूजन और सांस लेने में कठिनाई जैसी तकलीफ होने लगी। पीडि़तों को 1500 से 9000 रुपये तक भुगतान किये गये।कंपनी ने क्लिनिकल ट्रायल के एथिक नियमों का उल्लंघन कर गरीब,ग्रामीण,महिलाओं पर बिना अनुमति के परीक्षण किये।मामला सरकार,प्रशासन और स्वास्थ्य अधिकारी, मानवाधिकार आयोग के सम्मुख है।

इस लेख में ट्रायल संबधी भ्राँतियाँ दूर करने के लिये इस व्यवसाय की सरसरी तौर पर संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है,जैसे भारत में ही रोगियों पर क्लीनिकल ट्रायल क्यों किया जाता है? क्लीनिकल ट्रायल के क्या नियम हैं?क्या रोगी का गिनीपिग जैसा प्रयोग होता है?क्लीनिकल ट्रायल में रोगी को क्या अधिकार है?क्लीनिकल ट्रायल से क्या लाभ हो सकता है?

भारत में वर्तमान क्लीनिकल रिसर्च उद्योग एक दशक पुराना है। पिछले तीन चार वर्षों में इस व्यवसाय ने बहुत प्रगति की है। पश्चिमीय देशों में क्लीनिकल रिसर्च नई नहीं है।आधुनिक चिकित्सक की प्रैक्टिस को मेडिकल प्रैक्टिस कहा जाता है,जबकि क्लिनिकल ट्रायल या क्लीनिकल रिसर्च को क्लीनिकल प्रैक्टिस कहा जाता है।

क्लिनिकल ट्रायल का आधुनिक इतिहास है। आज क्लिनिकल रिसर्च के परिदृश्य में बहुत बदलाव आ गया है।द्वितीय विश्व में नाज़ियों द्वारा कैदियों पर अत्याचार कर उन पर ज़बरन क्लिनिकल रिसर्च किया गया।इसके बाद क्लिनिकल ट्रायल के लिये न्यूरंबर्ग कोड की संरचना की गई। उसके बाद हेलिसिंकी डिक्लेरेशन में रोगी के अधिकारों को सुरक्षित किया गया। हमारे देश में गुड क्लिनिकल प्रैक्टिस (जीसीपी) और फिर शेड्यूल वाय अधिनियम आया। अब क्लीनिकल ट्रायल रिसर्च के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और जापान के नेतृत्व में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (इन्टरनेशनल कॉन्फरेन्स ऑन हार्मोनाइजेशन - आईसीएच) द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशों का पालन कर किया जाता है। इसे आईसीएच-जीसीपी कहा जाता है।

भारत में इतना क्या खास है?

भारत में क्लीनिकल रिसर्च उद्योग तेजी से बढ़ रहा है। पिछले 3 वर्षों के दौरान यह उद्योग 20 करोड़ रुपए से 100 करोड़ रुपए बढ़ गया है। मार्केट अनुसंधान फर्म आरएनसीओएस की गई एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में 2010-2012 के दौरान क्लीनिकल रिसर्च की आउटसोर्सिंग में वार्षिक वृद्धि 30% बढ़कर लगभग $ 600 मिलियन तक बढ़ सकता है। अंतरराष्ट्रीय एजेन्सी अर्न्स्ट एंड यंग और वाणिज्य और उद्योग के इंडियन चैंबर्स संघ - फैप्सी द्वारा किये गये एक संयुक्त अध्ययन के अनुसार भारत में तीसरे चरण के क्लीनिकल रिसर्च 7% से अधिक और द्वितीय चरण के क्लीनिकल रिसर्च 3.2% किये जा रहे हैं। भारत में क्लीनिकल रिसर्च के बढने के कुछ कारण इस प्रकार हैं -

भारत में रोगी और चिकित्सक का अनुपात अधिक है।चिकित्सा के क्षेत्र में प्रशिक्षित, योग्य और समर्पित वैज्ञानिक और क्लिनिकल अनुसंधान पेशेवरों का एक बड़ी संख्या है।सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत अपनी कुशलता के जाना जाता है।भारतीयों में आनुवंशिकता,सांस्कृतिक और सामाजिक आर्थिक रूप में विविधता है।भारतीयों के समकक्ष कोकेशियान की तुलना में एशियाइयों में दवाओं की अलग तरह से प्रतिक्रिया देखी गई है।विश्व की जनसंख्या का लगभग15% भारतीय हैं।आबादी के आधार भारतीय1अरब से अधिक की आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।भारत में कैंसर और मधुमेह जैसे रोगियों की बहुलता है।भारत में उष्णकटिबंधीय संक्रमण से लेकर अपक्षयी रोगों की एक विस्तृत विविधता है।भारतीयों के बीच शिक्षा और संचार की प्राथमिक भाषा अंग्रेजी है।इन कई विशिष्ट कारणों से आज भारत वैश्विक चिकित्सीय ट्रायल के लिए पसंदीदा गंतव्य बन गया है।

क्लिनिकल ट्रायल क्या है?

क्लिनिकल ट्रायल चिकित्सा की प्रक्रियाओं और दवाओं की सुरक्षा और प्रभावशीलता का मूल्यांकन के लिये अनुसंधान अध्ययन किया जाता है। चिकित्सा,उपकरण या कोई नई प्रक्रिया किसी के लिये भी एक क्लिनिकल ट्रायल किया जा सकता है। क्लिनिकल ट्रायल रोगियों की मदद,रोग या अवस्था का प्रभावी उपचार और नए और बेहतर तरीके खोजने या अधिक प्रभावी और बेहतर सहनीय उपचार, वर्तमान उपलब्ध उपचार के एक नये प्रयोग की खोज, विशिष्ट वैज्ञानिक शंकाओं के समाधान ढूँढने के लिए किया जाता है।

क्लिनिकल ट्रायल के चार चरण

क्लिनिकल ट्रायल परीक्षण चार चरणों में किया जाता है। इसके प्रथम चरण, द्वितीय चरण, तीसरे चरण और चतुर्थ - चार चरण होते हैं। इन चार चरणों में अलग चिकित्सीय परीक्षण किये जाते हैं। आम तौर पूरी प्रक्रिया में आठ से दस साल तक लग सकते हैं।

पहले चरण के क्लिनिकल ट्रायल में औषधि का परीक्षण 20 से 100 स्वस्थ स्वयंसेवक मनुष्यों पर किया जाता है। रोगी के लिए ट्रायल की समयावधि अलग अलग होती है। प्रथम चरण क्लिनिकल ट्रायल में दवाओं की सुरक्षा और मात्रा की सहनशीलता का आकलन किया जाता है। प्रथम चरण में दवा की सुरक्षा निर्धारित की जाने पर द्वितीय चरण का क्लिनिकल ट्रायल स्वयंसेवकों के बड़े समूहों पर किया जाता है।

द्वितीय चरण 300 से अधिक स्वयंसेवक रोगियों में किया जाता है। इस चरण में दवा की प्रभावकारिता और विषाक्तता, उपचार की सुरक्षा और दवा की आवश्यक मात्रा का आकलन किया जाता है। द्वितीय चरण क्लिनिकल ट्रायल को पूरा करने के लिए कई साल तक लग सकते हैं।

तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल में दवा की प्रभावकारिता और दुष्प्रभाव को मॉनिटर करने के लिए किया जाता है। कई परीक्षण केन्द्रों पर 300 से 3000 लक्षित हालत से पीड़ित रोगियों के बड़े समूहों में लंबे समय यानि दो से पांच साल तक अनुसंधान किया जाता है। इसकी प्रक्रिया अन्य चरणों की अपेक्षा स्वाभाविक रूप से अधिक कठिन है। तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल में एक मौजूदा उपचार या प्लेसिबो के साथ तुलना में सुरक्षा, प्रभाव उत्पादकता और दवाओं की मात्रा का परीक्षण किया जाता है। तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल के दौरान अधिक लाभकारी प्रभाव प्रदान करने वाली निर्धारित मात्रा का स्तर का अध्ययन किया जाता है। अध्ययन के इस चरण में रोग के विभिन्न स्तरों के लिए दवा की प्रभावशीलता निर्धारित की जाती है।

चतुर्थ चरण अनुसंधान में लोगों के एक बड़े समूह के लिए एक विस्तारित समय अवधि में दवाओं के दीर्घकालिक उपयोग प्रभाव की जांच की जाती है। चतुर्थ चरण के अध्ययन लगातार नई दवाओं विपणन के बारे में अधिक जानकारी खोजने के लिए किया जाता है। चतुर्थ चरण क्लिनिकल ट्रायल में रोगी आमतौर पर पर्यवेक्षण के अधीन रहते हैं। चतुर्थ चरण अनुसंधान सामान्यतः चिकित्सक के कार्यालय में किया जाता है, जहां रोगियों को नियमित चिकित्सा देखभाल प्राप्त होती है और नुस्खे दिये जाते हैं। चतुर्थ चरण क्लिनिकल ट्रायल के अध्ययन के बाद दवा की आगे की रूपरेखा, इससे होने वाले लाभ और जोखिम और अधिक जानकारी खोजने के बाद अमेरीकी औषधि प्राधिकरण - एफडीए द्वारा दवा निर्माता को दवा की बिक्री की मंजूरी दी जाती है।

भारत में क्लीनिकल ट्रायल के लिये नियामकता

किसी निष्कर्ष से पहले क्लीनिकल रिसर्च के लाभों और उससे संबधी नियमों की जानकारी और उनको समझना सार्थक होगा। भारत के ड्रग्स महानियंत्रक (डीसीजीआई) भारत में किसी भी क्लीनिकल रिसर्च की मंजूरी के लिए जिम्मेदार है। डीसीजीआई की मंजूरी के बिना किसी प्रकार का क्लिनिकल ट्रायल भारत में नहीं किया जा सकता है। आमतौर पर भारत में मंजूरी के लिये 3 महीने लगते हैं। बाहरी सलाह के लिए डीसीजीआई कार्यालय विशेषज्ञ और अन्य सरकारी एजेंसियों पर निर्भर करता है। औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम की अनुसूची वाय में 2005 में संशोधन किया गया। पहले विदेशी ट्रायल्स के नीचे के एक चरण ही भारत में किये जा सकते थे। अब वैश्विक क्लीनिकल ट्रायल समानांतर रूप से भारत में भी किये जाना संभव है।

क्लिनिकल ट्रायल में भाग लेने के लिए अध्ययन विषय/ रोगी के अधिकारों की पूरी सुरक्षा की जाती है। जांच और दवा और मुफ्त चिकित्सा देखभाल की जाती है। स्वेच्छा से एक सूचित सहमति पर हस्ताक्षर करने के बाद ट्रायल किया जाता है। ट्रायल में भाग लेने के बाद भी ट्रायल जारी रखने के लिए कोई भी बंधन नहीं होता है। रोगी अपनी सहमति को किसी भी समय वापस ले सकता है। स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लगातार ध्यान कर अग्रणी परामर्श किया जाता है। भारत देश में क्लिनिकल ट्रायल की देखरेख और मंजूरी के लिये शीर्षस्थ नियामक संस्थान इस प्रकार हैं-

डीसीजीआई- ड्रग कन्ट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (औषधि नियंत्रक) भारत की सरकार द्वारा सभी क्लिनिकल ट्रायल का नियंत्रण किया जाता है।

आईसीएमआर – (भारतीय मेडिकल रिसर्च परिषद) यह सर्वोच्च संस्था,जैव चिकित्सा और अनुसंधान को समन्वय कराती है। जीईएसी – (जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी) यह अनुमोदन समिति जेनेटिक इंजीनियरिंग, जीव विज्ञान, क्लिनिकल जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों के इस्तेमाल और आणविक के क्षेत्र में क्लिनिकल ट्रायल का अनुमोदन करती है। जीईएसी डीसीजीआई द्वारा दिये गये दिशा निदेशों पर काम करती है।

डीबीटी विभाग – (जैवप्रौद्योगिकी विभाग) भारत में जीव विज्ञान जैव प्रौद्योगिकी विकास के लिए आधुनिक क्षेत्र की नई प्रेरणा की देखरेख करता है।

एईआरबी – (परमाणु ऊर्जा समीक्षा बोर्ड) यह प्राधिकरण नए प्रकार के विकिरण उपकरण, निरीक्षण और अनुमोदन विनियामक नियंत्रण, प्रतिष्ठानों के लिए विकिरण उपकरणों के पंजीकरण करता है।

बीएआरसी – (भाभा एटॉमिक अनुसंधान केन्द्र) यह सर्वोच्च संस्थान भारत में सभी विकिरण से संबंधित परियोजनाओं की मंजूरी देता है और देखरेख करता है। डीसीजीआई सभी क्लिनिकल ट्रायल्स में रेडियो फार्मेस्यूटिकल के लिए भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की विशेषज्ञ राय लेता है।

डीसीसी – (औषध परामर्शदाता समिति) केन्द्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करता है।

सीडीएल – (केन्द्रीय औषध प्रयोगशाला) दवाओं की नियंत्रण के लिए भारत सरकार की राष्ट्रीय गुणवत्ता सांविधिक प्रयोगशाला है।

सीएलएए – (सेंट्रल लाइसेंस प्राधिकरण) सीडीएससीओ के अन्तर्गत दवाओं के विनिर्माण लाइसेंस के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करता है।

डीटीएबी – (ड्रग्स तकनीकी सलाहकार बोर्ड) सीडीएससीओ को तकनीकी मार्गदर्शन देता है।

संस्थागत एथिक कमेटी (आईईसी) और इसकी भूमिका

क्लिनिकल रिसर्च का एथिकल कमेटी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।मेडिकल रिसर्च की भारतीय परिषद(आईसीएमआर) द्वारा चिकित्सीय ट्रायल के लिए दिये गये के दिशा निर्देशों में एथिकल कमेटी को संस्थागत स्तर पर स्थापित करने पर जोर दिया जाता है।चिकित्सीय ट्रायल अध्ययन शुरू करने से पहले एथिकल कमेटी (आईईसी) द्वारा अनुसंधान के तरीके(प्रोटोकॉल,दवा,जाँचस्थल और जाँचकर्ता,बीमा की जानकारी आदि) का अनुमोदन और पारित किया जाना जरूरी होता है। एथिक कमेटी की जिम्मेदारी ट्रायल की जाँच करते रहना और क्लिनिकल ट्रायल रिसर्च प्रगति की आवधिक समीक्षा करना होता है।

क्लिनिकल ट्रायल की गुणवत्ता बेहतर करने के लिए स्थितियों में बदलाव आ रहा है। आईसीएमआर की ह्यूमन रिसर्च पर एक केंद्रीय आचार समिति- सीईसीएचआर है,जो आईईसी के कामकाज का आडिट करती है।औषधि एवं प्रसाधन सामग्री के अनुसूची वाय में आईसीएमआर दिशा निर्देशों के अनुसार संशोधन किया गया है।

एथिक समिति की संरचना

एथिक (आईईसी) बहुआयामी स्वतंत्र और सक्षम होना चाहिए। एथिक समिति में कम से कम 5-7 सदस्य रखा जाना चाहिये। आम तौर पर न्यूनतम पांच व्यक्ति का एक कोरम स्वीकार किया जाता है। अधिकतम 12-15 सदस्य संख्या की सिफारिश की जाती है। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि बहुत बड़ी समिति ने आम सहमति पहुँचने में मुश्किल होती है। एथिक समिति का सचिव उसी संस्थान के जुडा नहीं होना चाहिए जहाँ ट्रायल किया जा रहा हो। समिति का काम का संचालन अन्य सदस्यों द्वारा ही होना चाहिए। सदस्यों में चिकित्सा / गैर चिकित्सा, वैज्ञानिक और गैर वैज्ञानिक का मिश्रण होना चाहिये। समाज/ समुदाय के सभी वर्गों के कल्याण की रक्षा और हित के लिये इसमें उम्र, लिंग, समुदाय, का पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। सदस्यों को स्थानीय सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों के बारे में पता होना चाहिए। एथिक समिति के भिन्न दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित संरचना इस प्रकार हैं: -

1. अध्यक्ष

2. एक या दो मौलिक चिकित्सा वैज्ञानिक (प्राथमिक रूप से एक फारमेकॉलोजिस्ट)

3. अन्य संस्थान से एक या दो चिकित्सक

4. एक कानूनी विशेषज्ञ या सेवानिवृत्त न्यायाधीश

5. एक गैर सरकारी सामाजिक एजेंसी / वैज्ञानिक प्रतिनिधि

6. एक दार्शनिक / थियोलोजिस्ट/ एथिस्ट

7. समाज से एक सामान्य व्यक्ति

8. सदस्य सचिव

लिखित सूचित सहमति क्या है?

क्लिनिकल रिसर्च अध्ययन में भर्ती करने से पहले रोगियों के हितों की रक्षा के लिए, एक लिखित सूचित सहमति आवश्यक है। जीसीपी दिशा निर्देश में सहमति प्रक्रिया के कार्यान्वयन के लिए सूचित प्रलेखन की जरूरत पर जोर दिया गया है। रोगी या रोगी के प्रतिनिधि द्वारा एक लिखित सूचित सहमति अनुबंध है कि वह अनुसंधान में भाग लेने की इच्छा रखते हैं। यह सहमति रोगी को या उसके प्रतिनिधि को उसकी भाषा में समझा कर ली जाती है।इस सहमति के बाद ही अध्ययन किया जा सकता है।हर व्यक्ति को संभावित जोखिम को समझाकर अनुसंधान अध्ययन में शामिल करने के लिए सहमति लिखित रूप में प्रदान करनी चाहिए।

निरक्षरता का स्तर और गरीब रोगी के नामांकन को पूरा करने के लिए प्रायोजकों पर दबाव पड सकता है।जीसीपी दिशानिर्देशों के आधार पर जांचकर्ता और क्लिनिकल रिसर्च स्थल पर अध्ययन दल के सदस्यों द्वारा अध्ययन प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन करने से अध्ययन में प्रतिभागियों के अधिकारों की रक्षा में मदद मिलती है।

रोगी के अधिकार

एक नैदानिक अध्ययन के भागीदार के रूप में और एक शोध अध्ययन के रोगी अधिकार है कि अध्ययन में भाग लेने के लिए निश्चित करें कि आप भाग लें या न लें। रोगी अपने अधिकार पर विचार करें और क्लिनिकल ट्रायल की अवधि में से पहले परिचित होना चाहिए। नामांकन से पहले रोगी संभावित परीक्षण जोखिम,बीमा के बारे में सारी जानकारी लेना चाहिए। अध्ययन की योजना क्या है, यह कब तक पूरा होगा, यह जहां किया जाएगा उसका पता आदि पूरी जानकारी और ट्रायल के बारे में किसी भी प्रकार की शंका,प्रश्न या चिंता की जानकारी लें। रोगी को किसी भी समय अध्ययन दवा के विषय पर सवाल पूछने का अधिकार है। रोगी की सूचना को गोपनीय रखा जाता है। परीक्षण में नामांकन के बाद भी रोगी पूरी तरह स्वैच्छिक होता है। रोगी को अधिकार होता है कि अध्ययन के दौरान किसी भी समय वह इसे छोड सकता है। किसी मजबूरी या पूर्वाग्रह में यह स्वीकृति नहीं दी जाती है।

Sunday, January 16, 2011

जगजीत सिंह चित्रा सिंह की गाई गजलें

किसका चेहरा अब मैं देखूं
किसका चेहरा अब मैं देखूं
चाँद भी देखा फूल भी देखा
बादल बिजली तितली जुगनूं कोई नहीं है ऐसा
तेरा हुस्न है जैसा

मेरी निगाहों ने ये कैसा ख्वाब देखा है
ज़मीं पे चलता हुआ माहताब देखा है

मेरी आँखों ने चुना है तुझको दुनिया देखकर
किसका चेहरा अब मैं देखूं तेरा चेहरा देखकर

नींद भी देखी ख्वाब भी देखा
नींद भी देखी ख्वाब भी देखा
चूड़ी बिंदिया दर्पण खुश्बू कोई नहीं है ऐसा
तेरा प्यार है जैसा

रंग भी देखा रूप भी देखा
रस्ता मंज़िल साहिल महफ़िल कोई नहीं है ऐसा
तेरा साथ है जैसा

बहुत खूबसूरत हैं आँखें तुम्हारी
बहुत खूबसूरत हैं आँखें तुम्हारी
बना दीजिए इनको किस्मत हमारी
उसे और क्या चाहिये ज़िंदगी में
जिसे मिल गई है मुहब्बत तुम्हारी

कभी यूँ भी तो हो

कभी यूँ भी तो हो
दरिया का साहिल हो
पूरे चाँद की रात हो
और तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो
परियों की महफ़िल हो
कोई तुम्हारी बात हो
और तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो
ये नर्म मुलायम ठंडी हवायें
जब घर से तुम्हारे गुज़रें
तुम्हारी ख़ुश्बू चुरायें
मेरे घर ले आयें

कभी यूँ भी तो हो
सूनी हर मंज़िल हो
कोई न मेरे साथ हो
और तुम आओ

कभी यूँ भी तो हो
ये बादल ऐसा टूट के बरसे
मेरे दिल की तरह मिलने को
तुम्हारा दिल भी तरसे
तुम निकलो घर से

कभी यूँ भी तो हो
तनहाई हो दिल हो
बूँदें हो बरसात हो
और तुम आओ

किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह

किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह
वो आशना भी मिला हमसे अजनबी की तरह

बढाके प्यास मेरी उस ने हाथ छोड़ दिया
वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल्लगी की तरह

किसे ख़बर थी बढेगी कुछ और तारीकी
छुपेगा वो किसी बदली में चाँदनी की तरह

कभी न सोचा था हमने "क़तील" उस के लिये
करेगा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरह

एक चमेली के मंडवे तले

एक चमेली के मंडवे तले,
मयकदे से जरा दूर उस मोड़ पर
दो बदन प्यार की आग में जल गये
प्यार हर्फ-ए-वफा
प्यार उन का खुदा
प्यार उनकी चिता
दो बदन प्यार की आग में जल गये
ओस में भीगते
चाँदनी में नहाते हुए
जैसे दो ताजा रूह
ताजा दम फूल पिछले पहर
ठंडी ठंडी सबब-ओ-चमन की हवा
सर्फ़े-मातम हुई – ३
काली काली लटों से लिपट
गरम रूखसार पे
एक पल के लिये रूक गयी
दो बदन प्यार की आग में जल गये
हमने देखा उन्हें
दिन में और रात में
नूर-ओ-जुल्मात में
दो बदन प्यार की आग में जल गये
मस्जिदों की मीनारों ने देखा उन्हें
मंदिरों के किवाड़ों ने देखा उन्हें
मयकदे की दरारों ने देखा उन्हें
दो बदन प्यार की आग में जल गये
अज़ अज़ल ता अबद
ये बता चारागर
तेरी जंबील में
नुस्खा-ऐ-कीमिया-ऐ-मुहब्बत भी है
कुछ इलाजो-मुदावा-ऐ-उल्फ़त भी है
दो बदन प्यार की आग में जल गये

तमन्ना फ़िर मचल जाये
तमन्ना फ़िर मचल जाये.. अगर तुम मिलने आ जाओ..
यह मौसम ही बदल जाये.. अगर तुम मिलने आ जाओ..
मुझे गम है.. कि मैने ज़िन्दगी मे कुछ नहीं पाया..
यह गम दिल से निकल जाये.. अगर तुम मिलने आ जाओ..
यह दुनिया भर के झगडे.. घर के किस्से.. काम की बातें..
बला हर एक टल जाये.. अगर तुम मिलने आ जाओ..
यह मौसम ही बदल जाये.. अगर तुम मिलने आ जाओ..
तमन्ना फ़िर मचल जाये.. अगर तुम मिलने आ जाओ..
नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे..
ज़माना मुझसे जल जाये.. अगर तुम मिलने आ जाओ..
तमन्ना फ़िर मचल जाये.. अगर तुम मिलने आ जाओ..
यह मौसम ही बदल जाये.. अगर तुम मिलने आ जाओ..
तमन्ना फ़िर मचल जाये.. अगर तुम मिलने आ जाओ..
अगर तुम मिलने आ जाओ.. अगर तुम मिलने आ जाओ..

पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम
पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसां पाए हैं
तुम शहरे मुहब्बत कहते हो, हम जान बचाकर आए हैं ।।
बुतख़ाना समझते हो जिसको पूछो ना वहाँ क्या हालत है
हम लोग वहीं से गुज़रे हैं बस शुक्र करो लौट आए हैं ।।
हम सोच रहे हैं मुद्दत से अब उम्र गुज़ारें भी तो कहाँ
सहरा में खु़शी के फूल नहीं, शहरों में ग़मों के साए हैं ।।
होठों पे तबस्सुम हल्का-सा आंखों में नमी से है 'फाकिर'
हम अहले-मुहब्बत पर अकसर ऐसे भी ज़माने आए हैं ।।

एक पुराना मौसम लौटा
एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हों तनहाई भी
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
कितनी सौंधी लगती है तब माज़ी की रुसवाई भी
दो दो शक़्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया है आपका इक सौदाई भी
ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी है
उन की बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी

वो चाँदनी का बदन
वो चाँदनी का बदन खुशबुओं का साया है,
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है।
तुम अभी शहर में क्या नए आए हो,
रुक गए राह में हादसा देख कर।
वो इत्रदान सा लहज़ा मेरे बुजुर्गों का,
रची बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुशबू।

परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता

परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता
बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता
हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में
अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता
तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता
मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता
कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है
ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे,कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे,अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे
हँसो आज इतना कि इस शोर में,सदा सिसकियों की सुनाई न दे
अभी तो बदन में लहू है बहुत,कलम छीन ले रोशनाई न दे
मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो,ज़मीं आसमाँ कुछ दिखाई न दे
ग़ुलामी को बरकत समझने लगें,असीरों को ऐसी रिहाई न दे
मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहिए ,जहाँ से मदीना दिखाई न दे
मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ,क़लम छीन ले रोशनाई न दे
ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है,रहे सामने और दिखाई न दे

अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें

अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें,हम उनके लिए ज़िंदगानी लुटा दें
हर एक मोड़ पर हम ग़मों को सज़ा दें ,चलो ज़िन्दगी को मोहब्बत बना दें
अगर ख़ुद को भूले तो, कुछ भी न भूले ,कि चाहत में उनकी, ख़ुदा को भुला दें
कभी ग़म की आँधी, जिन्हें छू न पाये ,वफ़ाओं के हम, वो नशेमन बना दें
क़यामत के दीवाने कहते हैं हमसे ,चलो उनके चहरे से पर्दा हटा दें
सज़ा दें, सिला दें, बना दें, मिटा दें ,मगर वो कोई फ़ैसला तो सुना दें

उस मोड़ से शुरू करें

उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िन्दगी
हर शय जहाँ हसीन थी, हम तुम थे अजनबी
लेकर चले थे हम जिन्हें जन्नत के ख़्वाब थे
फूलों के ख़्वाब थे वो मुहब्बत के ख़्वाब थे
लेकिन कहाँ है उन में वो पहली सी दिलकशी
रहते थे हम हसीन ख़यालों की भीड़ में
उलझे हुए हैं आज सवालों की भीड़ में
आने लगी है याद वो फ़ुर्सत की हर घड़ी
शायद ये वक़्त हमसे कोई चाल चल गया
रिश्ता वफ़ा का और ही रंगो में ढल गया
अश्कों की चाँदनी से थी बेहतर वो धूप ही

ढल गया आफ़ताब ऐ साक़ी

ढल गया आफ़ताब ऐ साक़ी,ला पिला दे शराब ऐ साक़ी
या सुराही लगा मेरे मुँह से,या उलट दे नक़ाब ऐ साक़ी
मैकदा छोड़ कर कहाँ जाऊँ,है ज़माना ख़राब ऐ साक़ी
जाम भर दे गुनाहगारों के,ये भी है इक सवाब ऐ साक़ी
आज पीने दे और पीने दे,कल करेंगे हिसाब ऐ साक़ी

मेरे दुख की कोई दवा न करो

मेरे दुख की कोई दवा न करो,मुझ को मुझ से अभी जुदा न करो
नाख़ुदा को ख़ुदा कहा है तो फिर,डूब जाओ, ख़ुदा ख़ुदा न करो
ये सिखाया है दोस्ती ने हमें,दोस्त बनकर कभी वफ़ा न करो
इश्क़ है इश्क़, ये मज़ाक नहीं ,चंद लम्हों में फ़ैसला न करो
आशिक़ी हो या बंदगी 'फ़ाकिर' बे-दिली से तो इबतिदा न करो

सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं

सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं, जिसको देखा ही नहीं उसको ख़ुदा कहते हैं
ज़िन्दगी को भी सिला कहते हैं कहनेवाले, जीनेवाले तो गुनाहों की सज़ा कहते हैं
फ़ासले उम्र के कुछ और बढा़ देती है,जाने क्यूँ लोग उसे फिर भी दवा कहते हैं
चंद मासूम से पत्तों का लहू है "फ़ाकिर", जिसको महबूब के हाथों की हिना कहते

होंठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो

होंठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो
बन जाओ मीत मेरे, मेरी प्रीत अमर कर दो

न उमर की सीमा हो, न जनम का हो बंधन
जब प्यार करे कोई, तो देखे केवल मन
नई रीत चलाकर तुम, ये रीत अमर कर दो

जग ने छीना मुझसे, मुझे जो भी लगा प्यारा
सब जीता किये मुझसे, मैं हर दम ही हारा
तुम हार के दिल अपना, मेरी जीत अमर कर दो

आकाश का सूनापन, मेरे तनहा मन में
पायल छनकाती तुम, आ जाओ जीवन में
साँसें देकर अपनी, संगीत अमर कर दो

क्यूँ ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए

क्यूँ ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए
इतने हुए करीब कि हम दूर हो गए
ऐसा नहीं कि हमको कोई भी खुशी नहीं
लेकिन ये ज़िन्दगी तो कोई ज़िन्दगी नहीं
क्यों इसके फ़ैसले हमें मंज़ूर हो गए
पाया तुम्हें तो हमको लगा तुमको खो दिया
हम दिल पे रोए और ये दिल हम पे रो दिया
पलकों से ख़्वाब क्यों गिरे क्यों चूर हो गए

जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया

जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया
उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया
सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई
और मुझ को एक कश्ती बादबानी दे गया
ख़ैर मैं प्यासा रहा पर उस ने इतना तो किया
मेरी पलकों की कतारों को वो पानी दे गया

प्यार मुझसे जो किया तुमने तो क्या पाओगी

प्यार मुझसे जो किया तुमने तो क्या पाओगी
मेरे हालात की आंधी में बिखर जाओगी

रंज और दर्द की बस्ती का मैं बाशिन्दा हूँ
ये तो बस मैं हूँ के इस हाल में भी ज़िन्दा हूँ
ख़्वाब क्यूँ देखूँ वो कल जिसपे मैं शर्मिन्दा हूँ
मैं जो शर्मिन्दा हुआ तुम भी तो शरमाओगी

क्यूं मेरे साथ कोई और परेशान रहे
मेरी दुनिया है जो वीरान तो वीरान रहे
ज़िन्दगी का ये सफ़र तुमको तो आसान रहे
हमसफ़र मुझको बनाओगी तो पछताओगी

एक मैं क्या अभी आयेंगे दीवाने कितने
अभी गूंजेगे मुहब्बत के तराने कितने
ज़िन्दगी तुमको सुनायेगी फ़साने कितने
क्यूं समझती हो मुझे भूल नही पाओगी

ये तेरा घर ये मेरा घर, किसी को देखना हो गर

ये तेरा घर ये मेरा घर, किसी को देखना हो गर
तो पहले आके माँग ले, मेरी नज़र तेरी नज़र
ये घर बहुत हसीन है

न बादलों की छाँव में, न चाँदनी के गाँव में
न फूल जैसे रास्ते, बने हैं इसके वास्ते
मगर ये घर अजीब है, ज़मीन के क़रीब है
ये ईँट पत्थरों का घर, हमारी हसरतों का घर

जो चाँदनी नहीं तो क्या, ये रोशनी है प्यार की
दिलों के फूल खिल गये, तो फ़िक्र क्या बहार की
हमारे घर ना आयेगी, कभी ख़ुशी उधार की
हमारी राहतों का घर, हमारी चाहतों का घर

यहाँ महक वफ़ाओं की है, क़हक़हों के रंग है
ये घर तुम्हारा ख़्वाब है, ये घर मेरी उमंग है
न आरज़ू पे क़ैद है, न हौसले पर जंग है
हमारे हौसले का घर, हमारी हिम्मतों का घर

हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है

हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है, हँसती आँखों में भी नमी-सी है
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था,रात की नब्ज़ भी थमी-सी है
किसको समझायें किसकी बात नहीं, ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है
ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई, गर्द इन पलकों पे जमी-सी है
कह गए हम ये किससे दिल की बात,शहर में एक सनसनी-सी है
हसरतें राख हो गईं लेकिन ,आग अब भी कहीं दबी-सी है

आदमी आदमी से मिलता है

आदमी आदमी से मिलता है,दिल मगर कम किसी से मिलता है
भूल जाता हूँ मैं सितम उस के,वो कुछ इस सादगी से मिलता है
आज क्या बात है के फूलों का,रंग तेरी हँसी से मिलता है
मिल के भी जो कभी नहीं मिलता,टूट कर दिल उसी से मिलता है
कार-ओ-बार-ए-जहाँ सँवरते हैं,होश जब बेख़ुदी से मिलता है

मेरे हम-नफ़स, मेरे हम-नवा

मेरे हम-नफ़स, मेरे हम-नवा, मुझे दोस्त बनके दग़ा न दे
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँवलब, मुझे ज़िन्दगी की दुआ न दे
मेरे दाग़-ए-दिल से है रौशनी, उसी रौशनी से है ज़िन्दगी
मुझे डर है अये मेरे चारागर, ये चराग़ तू ही बुझा न दे
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर, तेरा क्या भरोसा है चारागर
ये तेरी नवाज़िश-ए-मुख़्तसर, मेरा दर्द और बढ़ा न दे
मेरा अज़्म इतना बलंद है के पराये शोलों का डर नहीं
मुझे ख़ौफ़ आतिश-ए-गुल से है, ये कहीं चमन को जला न दे
वो उठे हैं लेके होम-ओ-सुबू, अरे ओ 'शकील' कहाँ है तू
तेरा जाम लेने को बज़्म में कोई और हाथ बढ़ा न दे

चलो बाँट लेते हैं अपनी सज़ायें

चलो बाँट लेते हैं अपनी सज़ायें
ना तुम याद आओ ना हम याद आयें
सभी ने लगाया है चेहरे पे चेहरा
किसे याद रखें किसे भूल जायें
उन्हें क्या ख़बर हो आनेवाला ना आया
बरसती रहीं रात भर ये घटायें

हमसफ़र होता कोई तो बाँट लेते दूरियाँ

हमसफ़र होता कोई तो बाँट लेते दूरियाँ
राह चलते लोग क्या समझें मेरी मजबूरियाँ
मुस्कुराते ख़्वाब चुनती गुनगुनाती ये नज़र
किस तरह समझे मेरी क़िस्मत की नामंज़ूरियाँ
हादसों की भीड़ है चलता हुआ ये कारवाँ
ज़िन्दगी का नाम है लाचारियाँ मजबूरियाँ
फिर किसी ने आज छेड़ा ज़िक्र-ए-मंजिल इस तरह
दिल के दामन से लिपटने आ गई हैं दूरियाँ

आज मैंने अपना फिर सौदा किया
आज मैंने अपना फिर सौदा किया और फिर मैं दूर से देखा किया
जिन्दगी भर मेरे काम आए असूल एक एक करके मैं उन्हें बेचा किया
कुछ कमी अपनी वफ़ाओं में भी थी तुम से क्याद कहते कि तुमने क्या किया
हो गई थी दिल को कुछ उम्मीीद सी खैर तुमने जो किया अच्छाय किया

एक ब्रहामण ने कहा है
एक ब्रहामण ने कहा है कि ये साल अच्छा है
जुल्म की रात बहुत जल्दी ढलेगी अब तो
आग चूल्हे में हर एक रोज जलेगी अब तो
भूख के मारे कोई बच्चा नही रोयेगा
चैन की नींद हर एक शख्स यहाँ सोयेगा
आंधी नफरत की चलेगी ना कहीं अब के बरस
प्यार की फस्ल उगायेगी जमीं अब के बरस
है यकीन अब ना कोई शोर शराबा होगा
जुल्म होगा ना कहीं खून खराबा होगा
ओस और धूप के सदमे ना सहेगा कोई
अब मेरे देश में बेघर ना रहेगा कोई
नये वादों का जो डाला है, वो जाल अच्छा है
रहनुमाओं ने कहा है कि ये साल अच्छा है
दिल के खुश रखने को गालिब ये ख्याल अच्छा है
दिल के खुश रखने को गालिब ये ख्याल अच्छा है

ऐ ख़ुदा रेत के सहरा को

ऐ ख़ुदा रेत के सहरा को समंदर कर दे
या छलकती आँखों को भी पत्थर कर दे

तुझको देखा नहीं महसूस किया है मैं ने
आ किसी दिन मेरे एहसास को पैकर कर दे

और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन
मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे

मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा

मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
दीवारों से टकराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा

हर बात गवारा कर लोगे मन्नत भी उतारा कर लोगे
ताबीज़ें भी बँधवाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा

तनहाई के झूले झूलोगे हर बात पुरानी भूलोगे
आईने से तुम घबराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा

जब सूरज भी खो जायेगा और चाँद कहीं सो जायेगा
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा

बेचैनी जब बढ जायेगी और याद किसी की आयेगी
तुम मेरी ग़ज़लें गाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा

ठुकराओ अब के प्यार करो मैं नशे में हूँ

ठुकराओ अब के प्यार करो मैं नशे में हूँ
जो चाहो मेरे यार करो मैं नशे में हूँ

अब भी दिला रहा हूँ यक़ीन-ए-वफ़ा मगर
मेरा न ऐतबार करो मैं नशे में हूँ

गिरने दो तुम मुझे मेरा सागर सम्भाल लो
इतना तो मेरे यार करो मैं नशे में हूँ

मुझको क़दम क़दम पे भटकने दो वाइज़ों
तुम अपना कारोबार करो मैं नशे में हूँ

फिर बेख़ुदी में हद से गुज़रने लगा हूँ
इतना न मुझसे प्यार करो मैं नशे में हूँ


तेरे खुशबु में बसे ख़त मैं जलाता कैसे

तेरे खुशबु में बसे ख़त मैं जलाता कैसे
जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा
जिनको इक उम्र कलेजे से लगाए रखा
जिनका हर लफ्ज़ मुझे याद था पानी की तरह
याद थे मुझको जो पैगाम-ऐ-जुबानी की तरह
मुझ को प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह
तूने दुनिया की निगाहों से जो बचाकर लिखे
सालाहा-साल मेरे नाम बराबर लिखे
कभी दिन में तो कभी रात में उठकर लिखे
तेरे खुशबु मे बसे ख़त मैं जलाता कैसे
प्यार में डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

झुकी झुकी सी नज़र बेकरार है के नहीं

झुकी झुकी सी नज़र बेकरार है के नहीं
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है के नहीं
तू अपने दिल की जवाँ धडकनों को गिन के बता
मेरी तरह तेरा दिल बेकरार है के नहीं
वो पल के जिस में मोहब्बत जवाँ होती है
उस एक पल का तुझे इंतज़ार है के नहीं
तेरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को
तुझे भी अपने पे ये ऐतबार है के नहीं

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या गम है जिसको छुपा रहे हो
आंखो में नमी हँसी लबों पर
क्या हाल है क्या दिखा रहे हो
बन जायेंगे ज़हर पीते पीते
ये अश्क जो पीते रहे हो
जिन ज़ख्मों को वक्त भर चला है
तुम क्यूं उन्हें छेड़े जा रहे हो
रेखाओं का खेल है मुक्क़द्दर
रेखाओं से मात खा रहे हो

रिश्ता ये कैसा है नाता ये कैसा है

रिश्ता ये कैसा है नाता ये कैसा है
पहचान जिस से नहीं थी कभी
अपना बना है वही अजनबी
रिश्ता ये कैसा है नाता ये कैसा है
तुम्हें देखते ही रहूं मैं
मेरे सामने यूं ही बैठे रहो तुम
करूं दिल की बातें मैं खामोशियों से
और अपने लबों से ना कुछ भी कहो तुम
ये रिश्ता है कैसा ये नाता है कैसा
तेरे तन की ख़ुशबू भी लगती है अपनी
ये कैसी लगन है ये कैसा मिलन है
तेरे दिल की धड़कन भी लगती है अपनी
तुम्हें पा के महसूस होता है ऐसे
के जैसे कभी हम जुदा ही नहीं थे
ये माना के जिस्मों के घर तो नये हैं
मगर हैं पुराने ये बंधन दिलों के

फिर आज मुझे तुमको

फिर आज मुझे तुमको बस इतना बताना है
हँसना ही जीवन है हँसते ही जाना है
मधुबन हो या गुलशन हो पतझड़ हो या सावन हो
हर हाल में इन्सां का इक फूल सा जीवन हो
काँटों में उलझ के भी खुशबू ही लुटाना है
हँसना ही जीवन है हंसते ही जाना है
हर पल जो गुज़र जाये दामन को तो भर जाये
ये सोच के जी लें तो तक़दीर संवर जाये
इस उम्र की राहों से खुशियों को चुराना है
हँसना ही जीवन है हँसते ही जाना है
सब दर्द मिटा दें हम हर ग़म को सज़ा दें हम
कहते हैं जिसे जीना दुनिया को सिखा दें हम
ये आज तो अपना है कल भी अपनाना है
हँसना ही जीवन है हँसते ही जाना है

ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो

ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मग़र मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी
मोहल्ले की सबसे निशानी पुरानी
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों में परियों का डेरा
वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई
वो छोटी-सी रातें वो लम्बी कहानी
कड़ी धूप में अपने घर से निकलना
वो चिड़िया वो बुलबुल वो तितली पकड़ना
वो गुड़िया की शादी पे लड़ना-झगड़ना
वो झूलों से गिरना वो गिर के सँभलना
वो पीतल के छल्लों के प्यारे-से तोहफ़े
वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी
कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जाना
घरौंदे बनानाबना के मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वो ख़्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी
न दुनिया का ग़म था न रिश्तों का बंधन
बड़ी खूबसूरत थी वो ज़िन्दगानी

हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए है

हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए है
जिंदा तो है जीने की अदा भूल गए है
हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए है
खुशबु जो लुटाती है मसलती है उसी को
एहसान का बदला यही मिलता है कली को
एहसान तो लेते है सिला भूल गए है
करते है मोहब्बत का और एहसान का सौदा
मतलब के लिए करते है इमान का सौदा
डर मौत का और खौफ-ऐ-खुदा भूल गए है
अब मोम पिघल कर कोई पत्थर नहीं होता
अब कोई भी कुर्बान किसी पर नहीं होता
यू भटकते है मंजिल का पता भूल गए है

कोई पास आया सवेरे सवेरे

कोई पास आया सवेरे सवेरे
मुझे आज़माया सवेरे सवेरे
मेरी दास्तां को ज़रा सा बदल कर
मुझे ही सुनाया सवेरे सवेरे
जो कहता था कल संभलना संभलना
वही लड़खड़ाया सवेरे सवेरे
कटी रात सारी मेरी मयकदे में
ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे

जब कभी तेरा नाम लेते है

जब कभी तेरा नाम लेते है
दिल से हम इन्तिक़ाम लेते है
मेरे बरबादियों के अफ़साने
मेरे यारों के नाम लेते है
बस यही एक जुर्म है अपना
हम मोहब्बत से काम लेते है
हर कदम पर गिरे मगर सीखा
कैसे गिरतों को थाम लेते है
हम भटककर जुनूँ की राहों में
अक़्ल से इंतिकाम लेते है

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का ख़िलौना है

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का ख़िलौना है
मिल जाये तो मिट्टी हैं खो जाये तो सोना है
अच्छा सा कोई मौसम तन्हा सा कोई आलम
हर वक़्त का ये रोना तो बेकार का रोना है
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना हैं किस छत को भिगोना है
ग़म हो कि ख़ुशी दोनों कुछ देर के साथी है
फिर रास्ता ही रास्ता है हंसना है ना रोना है

हर सू दिखाई देते हैं वो जलवागर मुझे

हर सू दिखाई देते हैं वो जलवागर मुझे
क्या-क्या फरेब देती है मेरी नज़र मुझे
डाला है बेखुदी ने अजब राह पर मुझे
आखें हैं और कुछ नहीं आता नज़र मुझे
दिल ले के मेरा देते हो दाग़-ए-जिगर मुझे
ये बात भूलने की नहीं उम्र भर मुझे
आया ना रास नाला-ए-दिल का असर मुझे
अब तुम मिले तो कुछ नहीं अपनी ख़बर मुझे

तुम नहीं ग़म नहीं शराब नहीं

तुम नहीं ग़म नहीं शराब नहीं
ऐसी तन्हाई का जवाब नहीं
गाहे-गाहे इसे पढा कीजे
दिल से बेहतर कोई किताब नहीं
जाने किस किस की मौत आयी है
आज रुख़ पर कोई नक़ाब नहीं
वो करम उन्गलियों पे गिरते हैं
ज़ुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं

कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है

कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है
ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है
वो ना आये तो सताती है एक ख़लिश दिल को
वो जो आये तो ख़लिश और जवाँ होती है
रूह को शाद करे दिल को पुर-नूर करे
हर नज़ारे में ये तनवीर कहाँ होती है
ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मुहब्बत को कहाँ तक रोके
दिल में जो बात हो आखों से बयाँ होती है
ज़िन्दगी एक सुलगती सी चिता है “साहिर”
शोला बनती है ना ये बुझ के धुआँ होती है

इश्क में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने ना दिया

इश्क में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने ना दिया
वरना क्या बात थी किस बात ने रोने ना दिया
आप कहते थे के रोने से ना बदलेंगे नसीब
उम्र भर आपकी इस बात ने रोने ना दिया
रोने वालों से कह दो उनका भी रोना रो लें
जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने ना दिया
तुझसे मिलकर हमें रोना था बहुत रोना था
तन्गी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने ना दिया
यार ने मुझको मुझे यार ने सोने ना दिया
यार ने मुझको मुझे यार ने सोने ना दिया
रात भर ताल-ए-बेदार ने सोने ना दिया
एक शब बुलबुल-ए-बेताब के जागे ना नसीब
पहलू-ए-गुल में कभी ख़ार ने सोने ना दिया
रात भर की दिल-ए-बेताब ने बातें मुझसे
मुझको इस इश्क के बीमार ने सोने ना दिया

वो नहीं मिलता मुझे इसका गिला अपनी जगह

वो नहीं मिलता मुझे इसका गिला अपनी जगह
उसके मेरे दरमियाँ फासिला अपनी जगह
ज़िन्दगी के इस सफ़र में सैकड़ों चेहरे मिले
दिल-कशी उनकी अलग पैकर तेरा अपनी जगह
तुझसे मिल कर आने वाले कल से नफ़रत मोल ली
अब कभी तुझसे ना बिछरूँ ये दुआ अपनी जगह
इस मुसलसल दौड में है मन्ज़िलें और फासिले
पाँव तो अपनी जगह हैं रास्ता अपनी जगह

मेरी तन्हाईयों तुम ही लगा लो मुझको सीने से

मेरी तन्हाईयों तुम ही लगा लो मुझको सीने से
कि मैं घबरा गया हूँ इस तरह रो रो के जीने से
ये आधी रात को फिर चूड़ियों सा क्या खनकता है
कोई आता है या मेरी ही ज़न्जीरें खनकती हैं
ये बातें किस तरह पूछूँ मैं सावन के महीने से
मुझे पीने दो अपने ही लहू का जाम पीने दो
ना सीने दो किसी को भी मेरा दामन ना सीने दो
मेरी वहशत ना बढ जाये कहीं दामन के सीने से

जाना है जाना है चलते ही जाना है

जाना है जाना है चलते ही जाना है
ना कोई अपना है ना ही ठिकाना है
सब रास्ते नाराज़ हैं
मन्ज़िल की आहटों से राही बेगाना है
जाना है जाना है चलते ही जाना है
क्या कभी साहिल भी तूफ़ान में बहते हैं
सब यहाँ आसान है हौसले कहते हैं
शोलों पे कांटों पे हँस के चल सकते हैं
अपनी तक्दीरों को हम बदल सकते हैं
बिगडे हालातों में दिल को समझाना है
जाना है जाना है चलते ही जाना है
ख्वाबों की दुनिया में यादों के रेले में
आदमी तन्हा है भीड में मेले में
ज़िन्दगी में ऐसा मोड भी आता है
पाँव रुक जाते हैं वक़्त थम जाता है
ऐसे में तो मुश्किल आगे बढ पाना है
जाना है जाना है चलते ही जाना है

क्या बताएं के जाँ गई कैसे

क्या बताएं के जाँ गई कैसे
फिर से दोहराएं वो घड़ी कैसे
क्या बताएं के जाँ गई कैसे
किसने रास्ते मे चाँद रखा था
मुझको ठोकर लगी कैसे
क्या बताएं के जाँ गई कैसे
वक़्त पे पाँव कब रखा हमने
ज़िदगी मुह के बल गिरी कैसे
क्या बताएं के जाँ गई कैसे
आँख तो भर आई थी पानी से
तेरी तस्वीर जल गयी कैसे
क्या बताएं के जाँ गई कैसे
हम तो अब याद भी नहीं करते
आप को हिचकी लग गई कैसे
क्या बताएं के जाँ गई कैसे

तेरी सूरत जो भरी रहती है आँखों में सदा

तेरी सूरत जो भरी रहती है आँखों में सदा
अजनबी चेहरे भी पहचाने से लगते हैं मुझे
तेरे रिश्तों में तो दुनियाँ ही पिरो ली मैंने
एक से घर हैं सभी एक से हैं बाशिन्दे
अजनबी शहर मैं कुछ अजनबी लगता ही नहीं
एक से दर्द हैं सब एक से ही रिश्ते हैं
उम्र के खेल में इक तरफ़ा है ये रस्साकशी
इक सिरा मुझको दिया होता तो कुछ बात भी थी
मुझसे तगडा भी है और सामने आता भी नहीं
सामने आये मेरे देखा मुझे बात भी की
मुस्कुराये भी पुराने किसी रिश्ते के लिये
कल का अखबार था बस देख लिया रख भी दिया
वो मेरे साथ ही था दूर तक मग़र एक दिन
मुड के जो देखा तो वो और मेरे पास न था
जेब फ़ट जाये तो कुछ सिक्के भी खो जाते हैं
चौधवें चाँद को फ़िर आग लगी है देखो
फ़िर बहुत देर तलक आज उजाला होगा
राख हो जायेगा जब फ़िर से अमावस होगी

है लौ ज़िंदगी

है लौ ज़िंदगी ज़िंदगी नूर है
मगर इस पे जलने का दस्तूर
है लौ ज़िंदगी
कभी सामने आता मिलने उसे
बड़ा नाम् उसका है मशहूर है
है लौ ज़िंदगी ज़िंदगी नूर है
मगर इस पे जलने का दस्तूर
है लौ ज़िंदगी
भवर पास है चल पहन ले इसे
किनारे का फदा बहुत दूर है
है लौ ज़िंदगी ज़िंदगी नूर है
मगर इस पे जलने का दस्तूर
है लौ ज़िंदगी
सुना है वो ही करने वाला है सब
सुना है के इंसान मज़बूर है
है लौ ज़िंदगी ज़िंदगी नूर है
मगर इस पे जलने का दस्तूर
है लौ ज़िंदगी

सहमा सहमा

सहमा सहमा डरा सा रहता है
जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है
सहमा सहमा डरा सा रहता है
इश्क में और कुछ नहीं होता
आदमी बावरा सा रहता है
जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है
सहमा सहमा डरा सा रहता है
एक पल देख लूँ तो उठता हूँ
एक पल देख लूँ
एक पल देख लूँ तो उठता हूँ
जल गया सब जरा सा रहता है
जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है
सहमा सहमा डरा सा रहता है
चाँद जब आसमाँ पे आ जाए
आप का आसरा सा रहता है
जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है
सहमा सहमा डरा सा रहता है
सहमा सहमा डरा सा रहता है

फूलों की तरह लब खोल कभी

फूलों की तरह लब खोल कभी
ख़ूश्बू की ज़ुबा में बोल कभी
अलफ़ाज़ परखता रेहता है
आवाज़ हमारी तोल कभी
अन्मोल नहीं लेकिन फिर भी
पूछो तो मुफ़्त का मोल कभी
खिड़की में कटी है सब राते
कुछ चौरस थीं कुछ गोल कभी
ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह
हो जाता है डांवां डोल कभी

ज़िंदगी क्या है जानने के लिये

ज़िंदगी क्या है जानने के लिये
ज़िंदा रहना बहुत जरुरी है
आज तक कोई भी रहा तो नहीं
सारी वादी उदास बैठी है
मौसमे गुल ने खुदकशी कर ली
किसने बारुद बोया बागों में
आओ हम सब पहन ले आइने
सारे देखेंगे अपना ही चेहरा
सारे हसीन लगेंगे यहाँ
है नहीं जो दिखाई देता है
आइने पर छपा हुआ चेहरा
तर्जुमा आइने का ठीक नहीं
हम को गलिब ने ये दुआ दी थी
तुम सलामत रहो हज़ार बरस
ये बरस तो फकत दिनों में गया
लब तेरे मीर ने भी देखे है
पँखुड़ी एक गुलाब की सी है
बात सुनते तो गालिब रो जाते
ऐसे बिखरे है रात दिन जैसे
मोतियों वाला हार टूट गया
तुमने मुझको पिरो के रखा था

आप अगर इन दिनो यहाँ होते

आप अगर इन दिनों यहाँ होते
हम ज़मीन पर भला कहाँ होते
आप अगर इन दिनों यहाँ होते
वक़्त गुज़्रा नहीं अभी वरना
रेत पर पाँव के निशाँ होते
मेरे आगे नहीं था अगर कोई मेरे
पीछे तो कारवा होते
तेरे साहिल पे लौट कर आती
अगर उम्मीदो के बादबा होते
आप अगर इन दिनों यहाँ होते
हम ज़मीन पर भला कहाँ होते
आप अगर इन दिनों यहाँ होते

नज़र उठाओ ज़रा तुम तो क़ायनात चले

नज़र उठाओ ज़रा तुम तो क़ायनात चले
है इन्तज़ार कि आँखों से “कोई बात चले”
तुम्हारी मर्ज़ी बिना वक़्त भी अपाहज है
न दिन खिसकता है आगे न आगे रात चले
न जाने उँगली छुडा के निकल गया है किधर
बहुत कहा था जमाने से साथ साथ चले
किसी भिखारी का टूटा हुआ कटोरा है
गले में डाले उसे आसमाँ पे रात चले

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो
पत्थरों में भी ज़ुबां होती है दिल होते हैं
अपने घर के दरोदीवार सजा कर देखो
फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है
वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो

आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा

आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगा
इतना मानूस न हो ख़िलवतेग़म से अपनी
तू कभी खुद को भी देखेगा तो ड़र जायेगा
तुम सरेराहेवफ़ा देखते रह जाओगे
और वो बामेरफ़ाक़त से उतर जायेगा
ज़िंदगी तेरी अता है तो ये जानेवाला
तेरी बख़्शिश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा
ड़ूबते ड़ूबते कश्ती को उछाला दे दूँ
मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जायेगा
ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का ‘फ़राज़’
ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जायेगा

रिंद जो मुझको समझते हैं

रिंद जो मुझको समझते हैं उन्हे होश नहीं
मैंक़दासाज़ हूं मैं मैंक़दाबरदोश नहीं
पांव उठ सकते नहीं मंज़िल-ए-जाना के ख़िलाफ़
और अगर होश की पूछो तो मुझे होश नहीं
अब तो तासीर-ए-ग़म-ए-इश्क़ यहां तक पहुंची
के इधर होश अगर है तो उधर होश नहीं
मेहंद-ए-तस्बीह तो सब हैं मगर इदराक कहां
ज़िंदगी ख़ुद ही इबादत है मगर होश नहीं
मिल के इक बार गया है कोई जिस दिन से ‘जिगर’
मुझको ये वहम है शायद मेरा था दोष नहीं
ये अलग बात है साक़ी के मुझे होश नहीं
वर्ना मैं कुछ भी हूं एहसानफ़रामोश नहीं
जो मुझे देखता है नाम तेरा लेता है
मैं तो ख़ामोश हूं हालत मेरी ख़ामोश नहीं
कभी उन मदभरी आँखों से पिया था इक जाम
आज तक होश नहीं होश नहीं होश नहीं

वस्ल की रात

वस्ल की रात तो राहत से बसर होने दो
शाम से ही है ये धमकी के सहर होने दो
जिसने ये दर्द दिया है वो दवा भी देगा
लादवा है जो मेरा दर्द-ए-जिगर होने दो
ज़िक्र रुख़सत का अभी से न करो बैठो भी
जान-ए-मन रात गुज़रने दो सहर होने दो
वस्ल-ए-दुश्मन की ख़बर मुझ से अभी कुछ ना कहो
ठहरो ठहरो मुझे अपनी तो ख़बर होने दो

हर गोशा गुलिस्तां था

हर गोशा गुलिस्तां था कल रात जहां मैं था
एक जश्न-ए-बहारां था कल रात जहां मैं था
नग़्मे थे हवाओं में जादू था फ़िज़ाओं में
हर साँस ग़ज़लफ़ां था कल रात जहां मैं था
दरिया-ए-मोहब्बत में कश्ती थी जवानी की
जज़्बात का तूफ़ां था कल रात जहां मैं था
मेहताब था बाहों में जलवे थे निगाहों में
हर सिम्त चराग़ां था कल रात जहां मैं था
‘ख़ालिद’ ये हक़ीक़त है नाकर्दा गुनाहों की
मैं ख़ूब पशेमां था कल रात जहां मैं था

घर से हम निकले थे

घर से हम निकले थे मस्जिद की तरफ़ जाने को
रिंद बहका के हमें ले गये मैख़ाने को
ये ज़बां चलती है नासेह के छुरी चलती है
ज़ेबा करने मुझे आय है के समझाने को
आज कुछ और भी पी लूं के सुना है मैंने
आते हैं हज़रत-ए-वाइज़ मेरे समझाने को
हट गई आरिज़-ए-रोशन से तुम्हारे जो नक़ाब
रात भर शम्मा से नफ़रत रही दीवाने को

एक दीवाने को

एक दीवाने को ये आये हैं समझाने कई
पहले मैं दीवाना था और अब हैं दीवाने कई
मुझको चुप रहना पड़ा बस आप का मुंह देखकर
वरना महफ़िल में थे मेरे जाने पहचाने कई
एक ही पत्थर लगे है हर इबादतगाह में
गढ़ लिये हैं एक ही बुत के सबने अफ़साने कई
मैं वो काशी का मुसलमां हूं के जिसको ऐ ‘नज़ीर’
अपने घेरे में लिये रहते हैं बुतख़ाने कई

बज़्म-ए-दुश्मन में बुलाते हो

बज़्म-ए-दुश्मन में बुलाते हो ये क्या करते हो
और फिर आँख चुराते हो ये क्या करते हो
बाद मेरे कोई मुझ सा ना मिलेगा तुम को
ख़ाक में किस को मिलाते हो ये क्या करते हो
छींटे पानी के ना दो नींद भरी आँखों पर
सोते फ़ितने को जगाते हो ये क्या करते हो
हम तो देते नहीं क्या ये भी ज़बरदस्ती है
छीन कर दिल लिये जाते हो ये क्या करते हो
हो ना जाये कहीं दामन का छुड़ाना मुश्किल
मुझ को दीवाना बनाते हो ये क्या करते हो

खुमारी चढ़ के उतर गई

खुमारी चढ़ के उतर गई
ज़िंदगी यूं ही गुजर गई
कभी सोते सोते कभी जागते
ख़्वाबों के पीछे यू ही भागते
अपनी तो सारी उमर गई
खुमारी चढ़ के उतर गई
ज़िंदगी यूं ही गुजर गई
रंगीन बहारों की ख्वाहिश रही
हाथ मगर कुछ आया नहीं
कहने को अपने थे साथी कई
साथ किसीने निभाया नहीं
कोई भी हमसफ़र नहीं
खो गई हर डगर कही
कभी सोते सोते कभी जागते
ख़्वाबों के पीछे यू ही भागते
अपनी तोह सारी उमर गई
खुमारी चढ़ के उतर गई
ज़िंदगी यूं ही गुजर गई
लोगों को अक्सर देखा है
घर के लिए रोते हुए
हम तो मगर बेघर ही रहे
घरवालों के होते हुए
आया अपना नज़र नहीं
अपनी जहाँ तक नज़र गई
कभी सोते सोते कभी जागते
ख़्वाबों के पीछे यू ही भागते
अपनी तो सारी उमर गई
खुमारी चढ़ के उतर गई
ज़िंदगी यूं ही गुजर गई
पहले तो हम सुन लेते थे
शोर में भी शेह्नैया- 2
अब तोः हमको लगती है
भीड़ में भी तन्हैया
जीने की हसरत किधर गई
दिल की कली बिखर गई
कभी सोते सोते कभी जागते
ख़्वाबों के पीछे यू ही भागते
अपनी तो सारी उमर गई
खुमारी चढ़ के उतर गई
ज़िंदगी यूं ही गुजर गई

सुन ली जो खुदा ने वो दुआ तुम तो नहीं हो

सुन ली जो खुदा ने वो दुआ तुम तो नहीं हो
दरवाजे पे दस्तक की सदा तुम तो नहीं हो
महसूस किया तुम को तो गीली हुई पलकें
बदले हुए मौसम की अदा तुम तो नहीं हो
अन्जानी सी राहों में नहीं कोई भी मेरा
किस ने मुझे युँ अपना कहा तुम तो नहीं हो
दुनिया को बहरहाल गिले शिकवे रहेगे
दुनिया की तरह मुझ से खफ़ा तुम तो नहीं हो

मुझे तुम से मोहब्बत हो गई है

मुझे तुम से मोहब्बत हो गई है
ये दुनिया खुबसुरत हो गई है
खुदा से रोज तुम को मांगते है
मेरी चाहत इबादत हो गई है
वो चेहरा चांद है आंखे सितारे
ज़मी फूलों की ज़न्नत हो गई है
बहुत दिन से तुम्हें देखा नहीं है
चले भी आओ मुद्दत हो गई है

जिस दिन से चला हूँ कभी मुड कर नहीं देखा

जिस दिन से चला हूँ कभी मुड कर नहीं देखा
मैंने कोई गुजरा हुआ मन्जर नहीं देखा
पत्थर मुझे कहता हैं मेरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने कभी मुझे छुकर नहीं देखा
बेवक्त अगर जाऊँगा सब चौंक पडेंगे
एक उम हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
ये फुल मुझे कोई विरासत में मिलें हैं
तुमने मेरा काटों भरा बिस्तर नहीं देखा

खुश रहे या बहुत उदास रहे

खुश रहे या बहुत उदास रहे
जिन्दगी तेरे आस पास रहे
आज हम सब के साथ खूब हँसे
और फिर देर तक उदास रहे
रात के रास्ते भी रोशन हो
हाथ में चाँद का गिलास रहे
आदमी के लिये जरूरी हैं
कोई उम्मीद कोई आस रहे

रात आँखों में कटी पलकों पे जुगनू आये

रात आँखों में कटी पलकों पे जुगनू आये
हम हवाओ की तरह जा के उसे छू आये
बस गई हैं मेरे एहसास में ये कैसी महक
कोई खूशबू मैं लगाऊ तेरी खूशबू आये
उसने छू कर मुझे पत्थर से फिर इन्सान किया
मुद्दतों बाद मेरि आँखों में आँसू आये
मैंने दिन रात खुदा से ये दुआ मागीं थी
कोई आहट ना हो मेरे दर पे जब तू आये

वो नहीं मिला तो मलाल क्या

वो नहीं मिला तो मलाल क्या जो गुजर गया सो गुजर गया
उसे याद करके ना दिल दुखाजो गुजर गया सो गुजर गया
ना गिला किया ना ख़फा हुए युँ ही रास्ते में जुदा हुए
ना तू बेवफा ना मैं बेवफा जो गुजर गया सो गुजर गया
तुझे एतबारों-य़कीन नहीं नहीं दुनिया इतनी बुरी नहीं
ना मलाल कर मेरे साथ आ जो गुजर गया सो गुजर गया
वो वफाऐं थी या ज़फाऐं थी ये ना सोच किस की खंताऐ थी
वो तेरा हैं उसको गले लगा जो गुजर गया सो गुजर गया

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती ना मिला

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती ना मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी ना मिला
घरों में नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी ना मिला
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड आया था
फिर उसके बाद मुझे कोई अजबनबी ना मिला
बहुत अजीब हैं ये कुरबतों की दुरी भी
वो मेरे साथ था और मुझे कभी ना मिला

कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाये

कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाये
तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये
चरागों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाये
अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर
मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाये
समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको
हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाये
मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिये बदनाम हो जाये
मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आसमाँ छूने में जब नाक़ाम हो जाये
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
ना जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये

यूँ तो जाते हुए मैंने उसे रोका भी नहीं

यूँ तो जाते हुए मैंने उसे रोका भी नहीं
प्यार उस से न रहा हो मुझे ऐसा भी नहीं
मुझको मंजिल की कोई फ़िक्र नहीं है य रब
पर भटकता ही रहू जिस पे वो रास्ता भी नहीं
मुन्तजिर में भी किसी शाम नहीं था उसका
और वादे पे कभी शख्स वो आया भी नहीं
जिसकी आहट पे निकल पड़ता था कल सीने से
देख कर आज उसे दिल मेरा धड़का भी नहीं

जवाब जिनका नहीं वो सवाल होते है

जवाब जिनका नहीं वो सवाल होते है
जो देखने में नहीं कुछ कमाल होते है
तराशता हूँ तुझे जिन्हें में अपने लफ्जों से
बहुत हसीन मेरे वो ख्याल होते है
हसीन होती है जितनी बला की दो आँखें
उसी बला के उन आंखों में जाल होते हैं
वह गुनगुनाते हुए यूँही जो उठाते है
क़दम कहाँ वो क़यामत की चाल होते हैं

रातें थी सूनी सूनी

रातें थी सूनी सूनी दिन भी उदास थे मेरे
तुम मिल गए तो जागे सोये हुए सवेरे
खामोश इन लबो को एक रागिनी मिली है
मुरझाये से गुलों को एक ताजगी मिली है
घेरे हुए थे मुझ को कब से घने अंधेरे
रूठा हुआ था मुझसे खुशियों को है तराना
लगता था जिंदगानी बन जायेगी फ़साना
हर सू लगे हुए थे तन्हाइयों के फेरे

सर ही न झुका

सर ही न झुका दिल भी तो झुका
कल्याण यंही होगा निर्वाण यही होगा
इन दीवारों से बातें कर
मत छलका तू मन का सागर
जीवन में यह सन्नाटा भर
फिर कान लगा कल्याण यंही होगा

जहाँ जहाँ मुझे सेहरा दिखायी देता है

जहाँ जहाँ मुझे सेहरा दिखायी देता है
मेरी तरह से अकेला दिखायी देता है
यह एक अब्र का टुकडा कहाँ कहाँ बरसे
तमाम दस्त ही प्यासा दिखायी देता है
यह किस मकाम पे लाई है जुस्तजू तेरी
जहाँ से अर्श भी नीचा दिखायी देता है

अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दे

अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दे
तेरा मुजरिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे
ऐ नए दोस्त मैं समझूँगा तुझे भी अपना
पहले माज़ी का कोई ज़ख़्म तो भर जाने दे
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी
कोई आँसू मेरे दामन पर बिखर जाने दे
ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको
सोचता हूँ कि कहूँ तुझसे मगर जाने दे

ये क्या जाने में जाना है

ये क्या जाने में जाना है जाते हो खफा हो कर
मैं जब जानूं मेरे दिल से चले जाओ जुदा हो कर
क़यामत तक उडेगी दिल से उठकर खाक आंखों तक
इसी रास्ते गया है हसरतों का काफिला हो कर
तुम्ही अब दर्द-ऐ-दिल के नाम से घबराए जाते हो
तुम्ही तो दिल में शायद आए थे दर्द-ऐ-आशियाँ हो कर
यूंही हमदम घड़ी भर को मिला करते थे बेहतर था
के दोनों वक्त जैसे रोज़ मिलते हैं जुदा हो कर

मय पिलाकर आपका क्या जायेगा

मय पिलाकर आपका क्या जायेगा
जायेगा ईमान जिसका जायेगा
देख कर मुझको वो शरमा जायेगा
ये तमाशा किस से देखा जायेगा
जाऊं बुतखाने से क्यूं काबे को मैं
हाथ से ये भी ठिकाना जायेगा
क़त्ल की जब उसने दी धमकी मुझे
कह दिया मैंने भी देखा जायेगा
पी भी ले दो घूँट जाहिद पी भी ले
मैंक़दे से कौन प्यासा जायेगा

है इख्तियार में तेरे

है इख्तियार में तेरे तो मोज़दा कर दे
वो शख्स मेरा नहीं है उसे मेरा कर दे
यह रेक्ज़ार कहीं खत्म ही नहीं होता
ज़रा सी दूर तो रास्ता हरा भरा कर दे
मैं उसके शोर को देखूं वो मेरा सब्र-ओ-सुकून
मुझे चिराग बना दे उसे हवा कर दे
अकेली शाम बहुत ही उदास करती है
किसी को भेज कोई मेरा हमनवा कर दे

ये भी क्या एहसान कम है

ये भी क्या एहसान कम है देखिये न आप का
हो रहा है हर तरफ़ चर्चा हमारा आप का
चाँद में तो दाग है पर आप में वो भी नहीं
चौधवीं के चाँद से बढ़के है चेहरा आप का
इश्क में ऐसे भी हम डूबे हुए हैं आप के
अपने चेहरे पे सदा होता है धोखा आप का
चाँद-सूरज धुप-सुबह कहकशा तारे शमा
हर उजाले ने चुराया है उजाला आप का

जब भी तन्हाई से घबरा के सिमट जाते हैं

जब भी तन्हाई से घबरा के सिमट जाते हैं
हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं
उन पे तूफान को भी अफ़सोस हुआ करता है
वो सफिने जो किनारों पे उलट जाते हैं
हम तो आए थे रहें साख में फूलों की तरह
तुम अगर हार समझते हो तो हट जाते हैं

हम तो यूं अपनी ज़िंदगी से मिले

हम तो यूं अपनी ज़िंदगी से मिले
अजनबी जैसे अजनबी से मिले
हर वफ़ा एक जुर्म हो गया
दोस्त कुछ ऎसी बेरुखी से मिले
फूल ही फूल हमने मांगे थे
दाग ही दाग जिंदगी से मिले
जिस तरह आप हम से मिलते हैं
आदमी यूं न आदमी से मिले

तुमने दिल की बात कह दी

तुमने दिल की बात कह दी आज ये अच्छा हुआ
हम तुम्हें अपना समझते थे बढा धोखा हुआ
जब भी हमने कुछ कहा उसका असर उल्टा हुआ
आप शायद भूलते है बारहा ऐसा हुआ
आपकी आंखों में ये आँसू कहाँ से आ गये
हम तो दिवाने है लेकिन आप को ये क्या हुआ
अब किसी से क्या कहें इकबाल अपनी दास्तां
बस खुदा का शुक्र है जो भी हुआ अच्छा हुआ

तेरे बारे में जब सोचा नहीं था

तेरे बारे में जब सोचा नहीं था
मैं तन्हा था मगर इतना नहीं था
तेरी तस्वीर से करता था बातें
मेरे कमरे में आईना नहीं था
समन्दर ने मुझे प्यासा ही रखा
मैं जब सहरा में था प्यासा नहीं था
मनाने रुठने के खेल में
बिछड जायेगे हम ये सोचा नहीं था
सुना है बन्द करली उसने आँखे
कई रातों से वो सोया नहीं था

मुझे होश नहीं

मुझे होश नहीं मुझे होश नहीं
कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं
रात के साथ गयी बात मुझे होश नहीं
मुझको ये भी नहीं मालुम के जाना है कहाँ
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं
जाने क्या टुटा है पैमाना के दिल है मेरा
बिखरे बिखरे है ख्यालात मुझे होश नहीं
आंसुओं और शराबो मे गुजर है अब तो
मैंने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं

चराग-ए-इश्क जलाने की रात आयी है

चराग-ए-इश्क जलाने की रात आयी है
किसी को अपना बनाने की रात आयी है
वो आज आये है महफ़िल में चाँदनी लेकर
के रोशनी में नहाने की रात आयी है
फ़लक का चांद भी शर्मा के मुँह छुपायेगा
नकाब रुख से उठा ने की रात आयी है
निगाहें साकी से पेहम के छलक रही है शराब
पियो के पीने पीलाने की रात आयी है

मुझसे बिछड़ के खुश रहते हो

मुझसे बिछड़ के खुश रहते हो
मेरी तरह तुम भी झूठे हो
इक टहनी पर चाँद टिका था
मैंने ये समझा तुम बैठे हो
उजले उजले फूल खिले थे
बिल्कुल जैसे तुम हँसते हो
मुझ को शाम बता देती है
तुम कैसे कपड़े पहने हो
तुम तन्हा दुनिया से लडोगे
बच्चों सी बातें करते हो


तेरे आने की जब ख़बर महके

तेरे आने की जब ख़बर महके
तेरी खुश्बू से सारा घर महके
शाम महके तेरे तसव्वुर से
शाम के बाद फिर सहर महके
रात भर सोचता रहा तुझ को
ज़हन-ओ-दिल मेरी रात भर महके
याद आए तो दिल मुनव्वर हो
दीद हो जाए तो नज़र महके
वो घड़ी दो घड़ी जहाँ बैठे
वो ज़मीं महके वो शजर महके


ये जो ज़िन्दगी की किताब है

ये जो ज़िन्दगी की किताब है ये किताब भी क्या खिताब है
कहीं एक हसीं सा ख्वाब है कही जान-लेवा अज़ाब है
कहीं छांव है कहीं धूप है कहीं और ही कोई रूप है
कई चेहरे हैं इसमे छिपे हुये एक अजीब सा ये निकाब है
कहीं खो दिया कहीं पा लिया कहीं रो लिया कहीं गा लिया
कहीं छीन लेती है हर खुशी कहीं मेहरबान लाज़वाब है
कहीं आँसू की है दास्तान कहीं मुस्कुराहटों का है बयान
कहीं बरकतों की हैं बारिशें कहीं तिशनगी बेहिसाब है

याद नहीं क्या क्या देखा था

याद नहीं क्या क्या देखा था सारे मंज़र भूल गये
उसकी गलियों से जब लौटे अपना भी घर भूल गये
ख़ूब गये परदेस कि अपने दीवार-ओ-दर भूल गये
शीशमहल ने ऐसा घेरा मिट्टी के घर भूल गये
तुझको भी जब अपनी क़समें अपने वादे याद नहीं
हम भी अपने ख़्वाब तेरी आँखों में रखकर भूल गये
मुझको जिन्होने क़त्ल किया है कोई उन्हे बतलाये ”नज़ीर”
मेरी लाश के पहलू में वो अपना ख़न्जर भूल गये

तुम को देखा तो ये ख़याल आया

तुम को देखा तो ये ख़याल आया
ज़िंदगी धूप तुम घना छाया
आज फिर दिल ने इक तमन्ना की
आज फिर दिल को हमने समझाया
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे
हमने क्या खोया हमने क्या पाया
हम जिसे गुनगुना नहीं सकते
वक्त ने ऐसा गीत क्यूं गाया

शम्मे मजार थी न कोई सोगवार था

शम्मे मजार थी न कोई सोगवार था
तुम जिस पे रो रहे थे वो किसका मजार था
तडपूंगा उम्र भर दिल-ऐ-मरहूम के लिए
कमबख्त नामुराद लड़कपन का यार था
जादू है या तिलिस्म तुम्हारी जुबान में
तुम झूट कह रहे थे मुझे एतबार था
क्या क्या हमारी सजदे की रुस्वाइयां हुईं
नक्शे-कदम किसी का सरे रेह्गुज़ार था

अब के बरस भी वो नहीं आया बहार में

अब के बरस भी वो नहीं आया बहार में
गुज़रेगा और एक बरस इंतज़ार में
ये आग इश्क की है बुझाने से क्या बुझे
दिल तेरे बस में है न मेरे इख्तियार में
है टूटे दिल में तेरी मोहब्बत तेरा ख़याल
खुश-रंग है बहार जो गुजारी बहार में
आँसू नहीं है आंखों में लेकिन तेरे बगैर
वो कापते हुए हैं दिल-ऐ-बेकरार में

गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं काटों से भी जीनत होती है

गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं काटों से भी जीनत होती है
जीने के लिए इस दुनिया में गम की भी ज़रूरत होती है
ऐ वाइज़-ऐ-नादान करता है तू एक क़यामत का चर्चा
यहाँ रोज़ निगाहें मिलती हैं यहाँ रोज़ क़यामत होती है
वो पुर्सिश-ऐ-गम को आये हैं कुछ कह न सकूं चुप रह न सकूं
खामोश रहूँ तो मुश्किल है कह दू तो शिकायत होती है
करना ही पड़ेगा जब्त-ऐ-आलम पीने ही पड़ेंगे ये आँसू
फरियाद-ओ-फुगान से ऐ नादाँ तौहीन-ऐ-मोहब्बत होती है
जो आके रुके दामन पे सदा वो अश्क नहीं है पानी है
जो अश्क न छलके आंखों से उस अश्क की कीमत होती है

काँटों की चुभन पायी फूलों का मज़ा भी

काँटों की चुभन पायी फूलों का मज़ा भी
दिल दर्द के मौसम में रोया भी हँसा भी
आने का सबब याद न जाने की ख़बर है
वो दिल में रहा और उसे तोड़ गया भी
हर एक से मंजिल का पता पूछ रहा है
गुमराह मेरे साथ हुआ रहनुमा भी
‘गुमनाम’ कभी अपनों से जो गम हुए हासिल
कुछ याद रहे उनमे तो कुछ भूल गया भी

जब तेरा नाम प्यार से लिखती हैं ऊँगलियाँ

जब तेरा नाम प्यार से लिखती हैं ऊँगलियाँ
मेरी तरफ़ ज़माने की उठती हैं ऊँगलियाँ
दामन सनम का हाथ में आया था एक पल
दिन रात उस एक पल से महकती हैं ऊँगलियाँ
जब से दूर हो गए हो उस दिन से ही सनम
बस दिन तुम्हारे आने के गिनती हैं ऊँगलियाँ
पत्थर तराश कर ना बना ताज एक नया
फनकार के ज़माने में कट्ठी हैं ऊँगलियाँ

दिन आ गए शबाब के आँचल संभालिये

दिन आ गए शबाब के आँचल संभालिये
होने लगी है शहर में हलचल संभालिये
चलिए संभल संभल के कठिन राह-ऐ-इश्क है
नाज़ुक बड़ी है आपकी पायल संभालिये
सज धज के आप निकले सरे राह खैर हो
टकरा न जाए आपका पागल संभालिये
घर से ना जाओ दूर किसी अजनबी के साथ
बरसेंगे जोर-जोर से बादल संभालिये

ये कैसी मोहब्बत कहाँ के फ़साने

ये कैसी मोहब्बत कहाँ के फ़साने
ये पीने पिलाने के सब है बहाने
वो दामन हो उनका के सुनसान सेहरा
बस हमको तो आख़िर हैं आँसू बहाने
ये किसने मुझे मस्त नज़रों से देखा
लगे ख़ुद-ब-ख़ुद ही कदम लड़खडाने
चलो तुम भी ‘गुमनाम’ अब मैंकदे में
तुम्हें दफन करने हैं कई गम पुराने

उल्फत का जब किसी ने लिया नाम रो पड़े

उल्फत का जब किसी ने लिया नाम रो पड़े
अपनी वफ़ा का सोच के अंजाम रो पड़े
हर शाम ये सवाल मोहब्बत से क्या मिला
हर शाम ये जवाब के हर शाम रो पड़े
राह-ऐ-वफ़ा में हमको खुशी की तलाश थी
दो कदम ही चले थे के हर कदम रो पड़े
रोना नसीब में है तो औरों से क्या गिला
अपने ही सर लिया कोई इल्जाम रो पड़े

बात साक़ी की न टाली जाएगी

बात साक़ी की न टाली जाएगी
कर के तौबा तोड़ डाली जाएगी।
देख लेना वो न खाली जाएगी
आह जो दिल से निकाली जाएगी।
ग़र यही तर्ज़-ए-फुगाँ है अन्दलीब
तो भी गुलशन से निकाली जाएगी।
आते-आते आएगा उनको ख़याल
जाते-जाते बेख़याली जाएगी।
क्यों नहीं मिलती गले से तेग़-ए-नाज़
ईद क्या अब के भी खाली जाएगी।

मिलकर जुदा हुए तो

मिलकर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम
एक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम
आँसू छलक छलक के सतायेंगे रात भर
मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम
जब दूरियों की याद दिलों को जलायेगी
जिस्मों को चाँदनी में भिगोया करेंगे हम
गर दे गया दगा हमें तूफ़ान भी ‘क़तील’
साहिल पे कश्तियों को डुबोया करेंगे हम

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको।
मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने
ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको।
ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको।
वादा फिर वादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ ‘क़तील’
शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको।

परेशाँ रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ

परेशाँ रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ
सुकूते मर्ग तारी है सितारों तुम तो सो जाओ
हमें तो आज की शब पौ फटे तक जागना होगा
यही किस्मत हमारी है सितारों तुम तो सो जाओ
हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो जाऐंगे
अभी कुछ बेक़रारी है सितारों तुम तो सो जाओ

ये मोजेज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाये मुझे

ये मोजेज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाये मुझे
के सँग तुझपे गिरे और ज़ख्म आये मुझे
वो मेहरबाँ है तो इक़रार क्यूँ नहीं करता
वो बद-गुमाँ है तो सौ बार आज़माये मुझे
वो मेरा दोस्त है सारे जहाँन को मालूम
दग़ा करे वो किसी से तो शर्म आये मुझे
मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूँ ‘क़तील’
ग़मे हयात से कह दो ख़रीद लाये मुझे
दिल को ग़मे हयात गवारा है इन दिनों
दिल को ग़मे हयात गवारा है इन दिनों
पहले जो दर्द था वही चारा है इन दिनों
ये दिल ज़रा सा दिल तेरी यादों में खो गया है
ज़र्रे को आँन्धियों का सहारा है इन दिनों
तुम आ ना सको तो शब को बढ़ा दूँ कुछ और भी
अपने कहे में सुब्ह का तारा है इन दिनों

तुम्हारी अन्जुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते

तुम्हारी अन्जुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते
जो वाबिस्ता हुये तुम से वो अफसाने कहाँ जाते
निकल करा दैरो काबा से अगर मिलता ना मैंख़ाना
तो ठुकराये हुये इन्सान ख़ुदा जाने कहाँ जाते
तुम्हारी बेरुख़ी ने लाज रख ली बादा-ख़ाने की
तुम आँखों से पिला देते तो पैमानें कहाँ जाते
चलो अच्छा हुआ काम आ गयी दीवानग़ी अपनी
वगरना हम जमाने भर को समझाने कहाँ जाते

सदमा तो है मुझे भी के तुझसे जुदा हूँ मैं

सदमा तो है मुझे भी के तुझसे जुदा हूँ मैं
लेकिन ये सोचता हूँ के अब तेरा क्या हूँ मैं
बिखरा पड़ा है तेरे घर में तेरा वजूद
बेकार महफिलों में तुझे ढूँडता हूँ मैं
ना जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूँ मैं
ले मेरे तजुर्बों से सबक़ ऐ मेरे रक़ीब
दो-चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ मैं

अँगड़ाई पर अँगड़ाई लेती है रात जुदाई की

अँगड़ाई पर अँगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो तुम क्या जानों बात मेरी तन्हाई की
कौन सियाही घोल रहा था वक्त के बहते दरिया में
मैंनें आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की
वस्ल की रात ने जाने क्यूँ इसरार था उनको जाने पर
वक्त से पहले डूब गये तारों ने बड़ी दानाई की
उड़ते उड़ते आस का पँछी दूर उफ़क़ में डूब गया
रोते रोते बैठ गयी आवाज़ किसी सौदाई की

मंज़िल न दे चराग न दे हौसला तो दे

मंज़िल न दे चराग न दे हौसला तो दे
तिनके का ही सही तू मगर आसरा तो दे
मैंने ये कब कहा के मेरे हक में हो जवाब
लेकिन खामोश क्यूँ है तू कोई फैसला तो दे
बरसों मैं तेरे नाम पे खाता रहा फरेब
मेरे खुदा कहाँ है तू अपना पता तो दे
बेशक मेरे नसीब पे रख अपना इख्तियार
लेकिन मेरे नसीब में क्या है बता तो दे

ये तो नहीं के गम नहीं

ये तो नहीं के गम नहीं
हाँ मेरी आँख नम नहीं
तुम भी तो तुम नहीं हो आज
हम भी तो आज हम नहीं
अब न खुशी की है खुशी
गम का भी अब तो गम नहीं
मौत अगर चे मौत है
मौत से ज़ीस्त कम नहीं

सोचा नहीं अच्छा-बुरा

सोचा नहीं अच्छा-बुरा देखा-सुना कुछ भी नहीं..
मांगा खुदा से रात-दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं..
देखा तुझे सोचा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे..
मेरी खता मेरी वफ़ा तेरी खता कुछ भी नहीं..
जिस पर हमारी आंख ने मोती बिछाये रात-भर..
भेजा उन्हे कागज़ वोही लिखा मगर कुछ भी नहीं..
एक शाम की दहलीज पर बैठे रहे वो देर तक..
आंखों से की बातें बहुत मुह से कहा कुछ भी नहीं..
क्या भला है क्या बुरा है कुछ नहीं
अपना अपना रास्ता है कुछ नहीं
क्या भला है क्या बुरा है कुछ नहीं
जुस्तजू है एक मुसलसल जुस्तजू
क्या कही कुछ खो गया है कुछ नहीं
मोहर मेरे नाम की हर शय पे है
मेरे घर मे मेरा क्या है कुछ नहीं
कहने वाले अपनी अपनी कह गए
मुझसे पुछ क्या सुना है कुछ नहीं
कोई दरवाजे पे है तो क्या हुआ
आप से कुछ मांगता है कुछ नहीं

फिर नज़र से पिला दीजिये

फिर नज़र से पिला दीजिये
होश मेरे उड़ा दीजिये
छोडिये बर्ह्मी की रविश
अब जरा मुस्कुरा दीजिये
बात अफसाना बन जायेगी
इस कदर मत हवा दीजिये
आए खुलके मिलिये गले
सब तकलुफ हटा दीजिये
कब से मुश्ताके दीदार हूँ
अब तो जलवा दिखा दीजिये


तेरा चेहरा है आईने जैसा

तेरा चेहरा है आईने जैसा
क्यो न देखू है देखने जैसा

तुम कहो तो मैं पूछ लू तुमसे
है सवाल एक पूछने जैसा

दोस्त मिल जायेगे कई लेकिन
न मिलेगा कोई मेरे जैसा

तुम अचानक मिले थे जब पहले
पल
नहीं है वो भूलने जैसा

काँटों से दामन उल्झाना

काँटों से दामन उल्झाना मेरी आदत है
दिल मे पराया दर्द बसना मेरी आदत है
मेरा गला अगर कट जाए तो मुझ पर क्या इल्जाम
हर कातिल को गले लगना मेरी आदत है
जिन को दुनिया ने ठुकराया जिन से है सब दूर
एसे लोगो को अपनाना मेरी आदत है
सब की बातें सुन लेता हु में चुप चाप मगर
अपने दिल की करते जन मेरी आदत है

घर से निकले थे हौसला करके

घर से निकले थे हौसला करके
लौट आए खुदा खुदा करके
हमने देखा है तज्रुबा करके
जिन्दगी तो कभी
नहीं आए
मौत आए जरा जरा करके
लोग सुनते रहे दिमाग की बात
हम चले दिल को रहनुमा करके
किसने पाया सुकून दुनिया मे
ज़िन्दगानी का सामना करके

मुस्कुरा कर मिला करो हमसे

मुस्कुरा कर मिला करो हमसे
कुछ कहा और सुना करो हमसे

बात करने से बात बढती है
रोज बाते किया करो हमसे

दुश्मनी से मिलेगा क्या तुमको
दोस्त बनकर रहा करो हमसे

देख लेते है सात पर्दो में
यु न परदा किया करो हमसे

ऐसी आंखें नहीं देखी

ऐसी आंखें नहीं देखी ऐसा काजल नहीं देखा
ऐसा जलवा
नहीं देखा ऐसा चेहरा नहीं देखा

जब ये दामन की हवा ने आग जंगल में लगा दे
जब ये शहरो में जाए रेत में फूल खिलाये

ऐसी दुनिया नहीं देखी ऐसा मंजर नहीं देखा
ऐसा आलम
नहीं देखा ऐसा दिलबर नहीं देखा

उस के कंगन का खड़कना जैसा बुल-बुल का चहकना
उस की पाजेब की छम-छम जैसे बरसात का मौसम

ऐसा सावन नहीं देखा ऐसी बारिश नहीं देखी
ऐसी रिम-झिम
नहीं देखी ऐसी खवाइश नहीं देखी

उस की बेवक्त की बाते जैसे सर्दी की हो राते
उफ़ ये तन्हाई ये मस्ती जैसे तूफान में कश्ती

मीठी कोयल सी है बोली जैसे गीतों की रंगोली
सुर्ख गालों पर पसीना जैसे फागुन का महीना

तुम को हम दिल में बसा लेंगे तुम आओ तो सही

तुम को हम दिल में बसा लेंगे तुम आओ तो सही
सारी दुनिया से छुपा लेंगे तुम आओ तो सही

एक वादा करो अब हम से न बिछडोगे कभी
नाज़ हम सारे उठा लेंगे तुम आओ तो सही

बेवफा भी हो सितमगर भी जफ़ा पेशा भी
हम खुदा तुम को बना लेंगे तुम आओ तो सही

राह तारीक है और दूर है मंज़िल लेकिन
दर्द की शमें जला लेंगे तुम आओ तो सही

सफर में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो

सफर में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती है
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो

यही है जिन्दगी कुछ ख्वाब चाँद उम्मीदें
इन्ही खि
लौनों से तुम भी बहल सको तो चलो

देने वाले मुझे मौजों की रवानी दे दे

देने वाले मुझे मौजों की रवानी दे दे
फिर से एक बार मुझे मेरी जवानी दे दे

अब्र तो जाम हो साकी हो मेरे पहलू में
कोई तो शाम मुझे ऐसी सुहानी दे दे

नशा आ जाए मुझे तेरी जवानी की क़सम
तू अगर जाम में भर के मुझे पानी दे दे

हर जवान दिल मेरे अफसाने को दोहराता रहे
हश्र तक ख़त्म न हो ऐसी कहानी दे दे

फिर उसी राहगुज़र पर शायद

फिर उसी राहगुज़र पर शायद
हम कभी मिल सकें मगर शायद

जान पहचान से क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त गौर कर शायद

मुन्तज़िर जिन के हम रहे उन को
मिल गए और हमसफ़र शायद

जो भी बिछडे हैं कब मिले हैं “फ़र्ज़”
फिर भी तू इंतज़ार कर शायद

ऐसा लगता है जिन्दगी तुम हो

ऐसा लगता है जिन्दगी तुम हो
अजनबी कैसे अजनबी तुम हो

अब कोई आरजू नहीं बाकी
जुस्तजू मेरी आखरी तुम हो

मैं ज़मीन पर घना अँधेरा हूँ
आसमानों की
चाँदनी तुम हो

दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें
किस ज़माने के आदमी तुम हो

मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले

मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले
उसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले

किताब-ए-माज़ी के औराक़ उलट के देख ज़रा
ना जाने कौन सा सफ़हा मुड़ा हुआ निकले

जो देखने में बहुत ही करीब लगता है
उसी के बारे में सोचो तो फ़ासला निकले

हज़ूर आपका भी एह्तराम करता चलूं

हज़ूर आपका भी एह्तराम करता चलूं
इधर से गुज़रा था.. सोचा सलाम करता चलूं

निगाह-ए-दिल की येही आखिरी तमन्ना है
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साये मे शाम करता चलूं

हज़ूर आपका भी एह्तराम करता चलूं
उन्हे येह ज़िद है कि मुझे देखकर किसी और को ना देख

मेरा येह शौक कि सबसे कलाम करता चलूं
इधर से गुज़रा था.. सोचा सलाम करता चलूं

ये मेरे ख्वाबों की दुनिया नहीं सही
अब आ गया हूं तो दो दिन कयाम करता चलूं

हज़ूर आपका भी एह्तराम करता चलूं
इधर से गुज़रा था.. सोचा सलाम करता चलूं

हम तो हैं परदेस में

हम तो हैं परदेस में देश में निकला होगा चाँद
अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद

जिन आंखों में काजल बनकर तैरी काली रात
उन आंखों में
आँसू का इक कतरा होगा चाँद

रात ने ऐसा पेच लगाया टूटी हाथ से डोर
आँगन वाले नीम में जाकर अटका होगा चाँद

चाँद बिना हर दिन यूँ बीता जैसे युग बीते
मेरे बिना किस हाल में होगा कैसा होगा चाँद

वो दिल ही क्या

वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझको भूल के जिंदा रहूँ खुदा न करे

रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िंदगी बनकर
ये और बात मेरी ज़िंदगी वफ़ा न करे

सुना है उसको मोहब्बत दुआएं देती है
जो दिल पे चोट तो खाए मगर गिला न करे

ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई मे
खुदा किसी को किसी से मगर जुदा न करे

इश्क क्या है

इश्क क्या है इश्क इबादत
इश्क है इमान

इश्क जगाये पत्थर में भी
दिल में हो जैसे अरमा

इश्क में मरना इश्क में जीना
इश्क का दामन छोड़ कभी न

इश्क को जिसने जान लिया है
उसने रब को मान लिया है

इश्क में खुशियो का मौसम है
इश्क में
आँसू इश्क में गम है

इश्क में जो भी खोया
खो देता अपनी पहचान

इश्क सफर है इश्क मुसाफिर
इश्क छिपा है इश्क है जाहिर

इश्क ग़ज़ल है इश्क तराना
इश्क का जादू सदियों पुराना

इश्क में दिल खिलते है
यह दिल हो जाते विरान

हर घड़ी ख़ुद से उलझना है

हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुकदर मेरा
मैं ही कश्ती हूँ मुझी मे है समंदर मेरा

एक से हो गए मौसम्हो के चेहरे सारे
मेरी आखो से कही खो गया मंजर मेरा

किस से पुछु के कहा गुम हूँ कई बरसों से
हर जगह दुन्द फिरता है मुझे घर मेरा

मुद्दते हो गई एक खवाब सुन्हेरा देखे
जागता रहता है हर नींद मे बिस्तर मेरा

बहुत खूबसूरत है आँखें तुम्हारी

बहुत खूबसूरत है आँखें तुम्हारी
अगर हो इनयात ऐ जाने मोहब्बत
गारा देगी ये दिल को किस्मत हमारी

जो सबसे जुदा है वो अंदाज़ हो तुम
छुपा था जो दिल मे वो ही राज़ हो तुम

तुम्हारी नजाकत बनी जबसे चाहत
सुकून बन गई है हर एक बेकरारी

न थे जब तलक तुम हमारी नजर में
न था चाँद शब में न सूरज सहर में

तुम्हारी इजाज़त तुम्हारी हुकूमत
ये सारा गगन है ये धरती है सारी

यूं तो गुज़र रहा है हर इक पल

यूं तो गुज़र रहा है हर इक पल खुशी के साथ
फिर भी कोई कमी सी है क्यों ज़िंदगी के साथ

रिश्ते वफाये दोस्ती सब कुछ तो पास है
क्या बात है पता
नहीं दिल क्यों उदास है
हर लम्हा है हसीन नई दिलकशी के साथ

चाहत भी है सुकून भी है दिल्बरी भी है
आखों में खवाब भी है लबो पर हसी भी है
दिल को
नहीं है कोई शिकायत किसी के साथ

सोचा था जैसा वैसा ही जीवन तो है मगर
अब और किस तलाश में बैचैन है नज़र
कुदरत तो मेहरबान है दरयादिली के साथ

जवान है रात सकिया शराब ला शराब ला

जवान है रात सकिया शराब ला शराब ला
ज़रा सी प्यास तो बुझा शराब ला शराब ला

तेरे शबाब पर सदा करम रहे बहार का
तुझे लगे मेरी दुआ शराब ला शराब ला

यहाँ कोई न जी सका न जी सकेगा होश में
मिटा दे नाम होश का शराब ला शराब ला

तेरा बड़ा ही शुक्रिया पिलाए जा पिलाए जा
न ज़िक्र कर हिसाब का शराब ला शराब ला

तुमने सूली पे लटकते जिसे देखा होगा

तुमने सूली पे लटकते जिसे देखा होगा
वक्त आएगा वही शक्श मसीहा होगा

ख्वाब देखा था के सेहरा में बसेरा होगा
क्या ख़बर थी के यही ख्वाब तो सच्चा होगा

मैं फ़िज़ाओं में बिखर जाऊंगा खुशबू बनकर
रंग होगा न बदन होगा न चेहरा होगा

पसीने पसीने हुई जा रहे हो

पसीने पसीने हुई जा रहे हो
ये बोलो कहां से चले आ रहे हो
हमें सब्र करने को कह तो रहे हो
मगर देख लो ख़ुद ही घबरा रहे हो

ये किसकी बुरी तुम को नज़र लग गई है
बहारों के मौसम में मुर्झा रहे हो

ये आईना है ये तो सच ही कहेगा
क्यों अपनी हक़ीक़त से कतरा रहे हो

आप को देख कर देखता रह गया

आप को देख कर देखता रह गया
क्या कहुँ और कहने को क्या रह गया

आते आते मेरा नाम सा रह गया
उसके होठों पे कुछ कांपता रह गया

वो मेरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की त्तरह देखता रह गया

झूठ वाले कहीं से कहीं बढ गये
और मैं था के सच बोलता रह गया

आंधियों के इरादे तो अच्छे ना थे
ये दिया कैसे जलता रह गया

तेरे कदमो पे सर होगा

तेरे कदमो पे सर होगा कजा सर पे खडी होगी
फिर उस सजदे का क्या कहना अनोखी बन्दगी होगी

नसीम-ए-सुबह गुनशन में गुलो से खेलती होगी
किसी की आखरी हिच्चकी किसी की दिल्ल्गी होगी

दिखा दुँगा सर-ए-महफिल बता दुँगा सर-ए-महशिल
वो मेरे दिल में होगें और दुनिया देखती होगी

मजा आ जायेगा महफ़िल में फ़िर सुनने सुनाने का
जुबान होगी वहाँ मेरी कहानी आप की होगी

तुम्हें दानिश्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम
नजर आखिर नजर है बेइरादा उठ गई होगी

मैं नशे में हूँ

ठुकराओ अब के प्यार करो मैं नशे में हूँ
जो चाहे मेरे यार करो मैं नशे में
हूँ

अभी दिला रहा हुँ यकीन-ए-वफ़ा मगर
मेरा ना एतबार करो मैं नशे में
हूँ

गिरने दो तुम मुझे मेरा सागर सम्भाल लो
इतना तो मेरे यार करो मैं नशे में
हूँ

मुझको कदम कदम पे भटकने दो आज दोस्त
तुम अपना करोबार करो मैं नशे में
हूँ

फ़िर बेखुदी में हद से गुजर ने लगा हूँ मैं
इतना ना मुझ से प्यार करो मैं नशे में
हूँ

मैंनु तेरा शबाब ले बैठा

मैंनु तेरा शबाब ले बैठा
रगं गौरा गुलाब ले बैठा

किन्नी- बीती ते किन्नी बाकी है
मैंनु एहो हिसाब ले बैठा

मैंनु जद वी तूसी तो याद आये
दिन दिहादे शराब ले बैठा

चन्गा हुन्दा सवाल ना करदा
मैंनु तेरा जवाब ले बैठा

इश्क की दास्तान है प्यारे

इश्क की दास्तान है प्यारे
अपनी अपनी जुबान है प्यारे

हम जमाने से इन्तकाम तो ले
एक हसीं दरम्यान है प्यारे

तू नहीं मैं हुँ मैं नहीं तू है
अब कुछ ऎसा गुमान है प्यारे

रख कदम फुंक-फूक कर नादां
जर्रे – जर्रे में जान है प्यारे

चांद के साथ कई दर्द पुराने निकले

चांद के साथ कई दर्द पुराने निकले
कितने गम थे जो तेरे गम के बहाने निकले

फ़सल-ए-गुल आई फ़िर एक बार असीनाने-वफ़ा
अपने ही खून के दरिया में नहाने निकले

दिल ने एक ईंट से तामीर किया हसीं ताजमहल
तुने एक बात कही लाख फसाने निकले

दश्त-ए-तन्हाई ये हिजरा में खडा सोचता हुँ
हाय क्या लोग मेरा साथ निभाने निकले

तुम ने बदले हम से गिन गिन के लिए

तुम ने बदले हम से गिन गिन के लिए
हमने क्या चाह था इस दिन के लिए

वस्ल का दिन और इतना मुख्तसर
दिन गिने जाते थे इस दिन के लिए

वोह नहीं सुनते हमारी क्या करें
मांगते हैं हम दुआ जिन के लिए

चाहने वालों से गर मतलब नहीं
आप फिर पैदा हुए किन के लिए

बागबां कलियाँ हों हलके रंग की
भेजनी हैं एक कमसिन के लिए

जीते रहने की सज़ा दे जिन्दगी जिन्दगी

जीते रहने की सज़ा दे जिन्दगी ऐ जिन्दगी
अब तो मरने की दुआ दे जिन्दगी ऐ जिन्दगी

मैं तो अब उकता गया हूँ क्या यही है कायेनात
बस ये आइना हटा दे जिन्दगी ऐ जिन्दगी

धुंडने निकला था तुझको और ख़ुद को खो दिया
तू ही अब मेरा पता दे जिन्दगी ऐ जिन्दगी

या मुझे अहसास की इस कैद से कर दे रिहा
वर्ना दीवाना बना दे जिन्दगी ऐ जिन्दगी

जिन्दगी तुने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं

जिन्दगी तुने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं
तेरे दामन मैं मेरे वास्ते क्या कुछ भी नहीं

मेरे इन हाथों की चाहो तो तलाशी ले लो
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं

हम ने देखा है कई ऐसे खुदाओं को यहाँ
सामने जिन के वो सच मुच का खुदा कुछ भी नहीं

या खुदा अब के ये किस रंग में आई है बहार
ज़र्द ही ज़र्द है पेडो पे हरा कुछ भी नहीं

दिल भी एक जिद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह
या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं

सच्ची बात कही थी मैंने

सच्ची बात कही थी मैंने
लोगों ने सूली पे चढाया
मुझ को ज़हर का जम पिलाया
फिर भी उन को चैन न आया

सच्ची बात कही थी मैंने
ले के जहाँ भी वक्त गया है
ज़ुल्म मिला है ज़ुल्म स्सहा है
सच का ये इनाम मिला है

सच्ची बात कही थी मैंने
सब से बेहतर कभी न बनना
जग के रहबर कभी न बनना
पीर पयाम्बर कभी न बनना

चुप रह कर ही वक्त गुजारो
सच कहने पे जान मत वारो
कुछ तो सीखो मुझ से यारो

सच्ची बात कही थी मैंने

बे सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है

बे सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
हम खफा कब थे मनाने की ज़रूरत क्या है

आप के दम से तो दुनिया का भरम है कायम
आप जब हैं तो ज़माने की ज़रूरत क्या है

तेरा कूचा तेरा डर तेरी गली काफी है
बे-ठिकानों को ठिकाने की ज़रूरत क्या है

दिल से मिलने की तमन्ना ही नहीं जब दिल में
हाथ से हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है

रंग आंखों के लिए बू है दिमागों के लिए
फूल को हाथ लगाने की ज़रूरत क्या है

शेख़ जी थोड़ी सी पी कर आइये

शेख़ जी थोड़ी सी पी कर आइये
मए है क्या सही फिर हमें बतलाइए

आप क्यों हैं सारी दुनिया से जुदा
आप भी दुश्मन मेरे बन जाइए

क्या है अच्छा क्या बुरा बन्दा नवाज़
आप समझें तो हमें समझाइए

जाने दिज्ये अक्ल बातें जनाब
दिल की सुनिये और पीते जाइए

कोई मौसम ऐसा आए

कोई मौसम ऐसा आए
उस को अपने साथ जो लाये

लोगों से तारीफ सुनी है
उस से मिल कर देखा जाए

आज भी दिल पर बोझ बहुत है
आज भी शायद नींद न आए

हाल है दिल का जुगनू जैसा
जलता जाइये बुझता जाए

बीते लम्हे कुछ ऐसे हैं
खुशबू जैसे हाथ न आए

दैरो हरम मैं बसने वालो

दैरो हरम मैं बसने वालो
मए खानों में फुट न डालो

तूफान से हम टकराएँगे
तुम अपनी कश्ती को संभालो

मएखाने में आए वायेज़
इन को भी इन्सान बना लो

आरिज़-ओ-लब सादा रहने दो
ताजमहल पे रंग न डालो

प्यार का पहला ख़त

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नये परिन्दों को उड़ने में वक़्त तो लगता है।

जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है।

गाँठ अगर पड़ जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है।

हमने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँढ़ लिया है
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है।

तुम हमारे नहीं तो क्या गम है

तुम हमारे नहीं तो क्या गम है
हम तुम्हारे तो है यह क्या कम है
हुस्न की शोखिया ज़रा देखो
गाहे शोला है गाहे शबनम है
मुस्कुरा दो ज़रा खुदा के लिए
शम-ऐ-मफिल में रौशनी कम है
बन गया है यह ज़िंदगी अब तो
तुझ से बढकर हमे तेरा गम है

फूल भरे है दामन दामन

फूल भरे है दामन दामन
लेकिन वीरान गुलशन गुलशन
अक्ल की बातें करने वाले
क्या समझेगे दिल की धड़कन
कौन किसी के दुःख का साथी
आपने आसू अपना दामन
तेरा दामन छोडू कैसे
मेरी दुनिया तेरा दामन

आखों से यूं आँसू

खों से यूं आँसू ढलके
सागर से जैसे मए छलके
हम समझे मफ्हुम-ऐ-भरा
कोई आया भेष बदल के
काश बता सकते परवाने
क्या खोया क्या पाया जलके
मंजिल तक वो क्या पहुचा
जिसने देखि राह न चलके

उठा सुराही

उठा सुराही ले शीशा-ओ-जाम साकी
फिर इसके बाद खुदा का भी नाम ले साकी
फिर इसके बाद हमे तिशनगी रहे न रहे
कुछ और देर मुरवत से काम ले साकी
फिर इसके बाद जो होगा वो देखा जाएगा
अभी तो पीने पिलाने से काम ले साकी
तेरे हजूर में होश-ओ-खिरद से क्या हासिल
नहीं है मए तो निगाहों से काम ले साकी

हुस्न वालो का ऐतराम करो

हुस्न वालो का ऐतराम करो
कुछ तो दुनिया मे नेक काम करो
शेख जी आये है बव्जू होकर
अब तो पीने का इन्तेजाम करो
अभी बरसेंगे हर तरफ़ जलवे
तुम निगाहों का एह्त्माम करो
लोग डरने लगे गुनाहों से
बारिश-ऐ-रहमत-ऐ-तमाम करो

अब खुशी है न कोई गम

अब खुशी है न कोई गम रुलाने वाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला

उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला

इक मुसाफिर के सफर जैसी है सबकी दुनिया
कोई जल्दी में कोई देर से जाने वाला

एक बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा-चेहरा
जिस तरफ़ देखिये आने को है आने वाला

ऐ काश वो किसी दिन

ऐ काश वो किसी दिन तन्हाईयो मे आये
उनको ये राज़-ए-दिल हम महफिल मे क्या बताये

लगता है डर उन्हे तो हमराज़ ले के आये
जो पुछना है पुछे कहना है जो सुनाये

तोबा हमारी हमदम उन्हे हाथ भी लगाये
ऐ काश वो किसी दिन तन्हाईयो मे आये

उन्हे इश्क़ अगर न होता पल्के नहीं झुकाते
गालो पे शोख बादल ज़ुल्फो के न गिराते

करदे न क़त्ल हमको मासूम ये अदाये
ऐ काश वो किसी दिन तन्हाईयो मे आये

ऐ काश वो किसी दिन् टन्हयियो मेइन् आये
उनको ये राज़-ए-दिल हम महफिल मे क्या बताये

कैसे कैसे हादसे सहते रहे

कैसे कैसे हादसे सहते रहे
हम यूँही जीते रहे हँसते रहे

उसके आ जाने की उम्मीदें लिए
रास्ता मुड़ मुड़ के हम तकते रहे

वक्त तो गुजरा मगर कुछ इस तरह
हम चरागों की तरह जलते रहे

कितने चेहरे थे हमारे आस-पास
तुम ही तुम दिल में मगर बसते रहे

दोस्ती जब किसी से की जाए

दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए

मौत का ज़हर है फिजाओं में
अब कहाँ जा के साँस ली जाए

बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ
ये नदी कैसे पार की जाए

मेरे माजी के ज़ख्म भरने लगे
आज फिर कोई भूल की जाए

बोतलें खोल के तू पी बरसों
आज दिल खोल के भी पी जाए

बेबसी जुर्म है हौसला जुर्म है

बेबसी जुर्म है हौसला जुर्म है
ज़िंदगी तेरी एक-एक अदा जुर्म है

ऐ सनम तेरे बारे में कुछ सोचकर
अपने बारे में कुछ सोचना जुर्म है

याद रखना तुझे मेरा एक जुर्म था
भूल जाना तुझे दूसरा जुर्म है

क्या सितम है के तेरे हसीन शहर में
हर तरफ़ गौर से देखना जुर्म है

अपने होठों पर सजाना चाहता हूं

अपने होठों पर सजाना चाहता हूं
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूं

कोई आसू तेरे दामन पर गिराकर
बूंद को मोती बनाना चाहता हूं

थक गया मैं करते करते याद तुझको
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूं

छा रहा हैं सारी बस्ती में अंधेरा
रोशनी को घर जलाना चाहता हूं

आखरी हिचकी तेरे ज़ानो पे आये
मौत भी मैं शायराना चाहता हूं

जब किसी से कोई गिला रखना

जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना

यूं उजालों से वास्ता रखना
शमा के पास ही हवा रखना

घर की तामिर चाहे जैसी हो
इसमें रोने की कुछ जगह रखना

मिलना जुलना जहा ज़रूरी हो
मिलने ज़ुलने का हौसला रखना

जीवन क्या है चलता फिरता एक खिलोना है

जीवन क्या है चलता फिरता एक खिलोना है
दो आँखो मे एक से हसँना एक से रोना है

जो जी चाहे वो मिल जाये कब ऐसा होता है
हर जीवन जीवन जीने का समझौता है
अब तक जो होता आया है वो ही होना है

रात अन्धेरी भोर सुहानी यही ज़माना है
हर चादर मे दुख का ताना सुख का बाना है
आती साँस को पाना जाती साँस को खोना है

बदला ना अपने आप को जो थे वही रहे

बदला ना अपने आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे

ढुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को तुम
थोड़ी बहुत तो ज़हन मे नाराज़गी रहे

अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी करीब रहे दुर ही रहे

गुज़रो जो बाग से तो दुआ मांगते चलो
जिसमे खिले है फुल वो डाली हरी रहे

अपना गम ले के कही और ना जाया जाये

अपना गम ले के कही और ना जाया जाये
घर मे बिखरी हुई चीजो को सजाया जाये
जिन चिरागो को हवाओ का कोई खौफ़
नहीं
ऊन चिरागो को हवाओ से बचाया जाये
बाग मे जाने के आदाब हुआ करते है
किसी तित्ली को न फूलो से उडाया जाये
घर से मस्जिद है बहुत दुर चलो यू कर ले
किसी रोते हुये बच्चे को हसँया जाये

इन्तिहा आज इश्क की कर दी

इन्तिहा आज इश्क की कर दी
आप के नाम ज़िन्दगी कर दी

था अँधेरा गरीब खाने में
आप ने आ के रोशनी कर दी

देने वाले ने उन को हुस्न दिया
और अता मुझ को आशिकी कर दी

तुम ने जुल्फों को रुख पे बिखरा कर
शाम रंगीन और भी कर दी

सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता

जवां होने लगे जब वो तो हमसे कर लिया परदा
हया यकलख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता

सवाल-ए-वस्ल पे उनको उदू का खौफ़ है इतना
दबे होंठों से देते हैं जवाब आहिस्ता आहिस्ता

हमारे और तुम्हारे प्यार में बस फ़र्क है इतना
इधर तो जल्दी-जल्दी है उधर आहिस्ता आहिस्ता

शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तों अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता

वो बेदर्दी से सर काटें ‘अमीर’ और मैं कहूँ उनसे
हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे कि तुम इतनी परेशां क्यूं हो
उँगलियाँ उठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ
इक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ
चूड़ियों पर भी कई तन्ज़ किये जायेंगे
कांपते हाथों पे भी फ़िक़रे कसे जायेंगे
लोग ज़ालिम हैं हर इक बात का ताना देंगे
बातों बातों मे मेरा ज़िक्र भी ले आयेंगे
उनकी बातों का ज़रा सा भी असर मत लेना
वर्ना चेहरे के तासुर से समझ जायेंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी

उम्र जलवों में बसर हो

उम्र जलवों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं
हर शब-ए-गम की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं

चश्म-ए-साकी से पियो या लब-ए-सगर से पियो
बेखुदी आठों पहर हो ये ज़रूरी तो नहीं

नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है
उनकी आगोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं

शेख करता तो है मस्ज़िद में खुदा को सज़दे
उसके सज़दों में असर हो ये ज़रूरी तो नहीं

सबकी नज़रों में हो साकी ये ज़रूरी है मगर
सब पे साकी की नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं

हँस के बोला करो

हँस के बोला करो बुलाया करो
आप का घर है आया जाया करो

मुस्कराहट है हुस्न का जेवर
मुस्कुराना न भूल जाया करो

हद से बढ कर हसीन लगते हो
झूठी कस्मे ज़रुर खाया करो

आए हैं समझाने लोग

आए हैं समझाने लोग
हैं कितने दीवाने लोग

दैर-ओ-हरम में चैन जो मिलता
क्यूं जाते
मैंखाने लोग

जान के सब कुछ कुछ भी ना जाने
हैं कितने अन्जाने लोग

वक़्त पे काम नहीं आते हैं
ये जाने पहचाने लोग

अब जब मुझको होश नहीं है
आए हैं समझाने लोग

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िन्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं

तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं

मेरी नज़रें भी ऐसे क़ातिलों का जान-ओ-ईमान है
निगाहें मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं

‘फिराक़’ बदल कर भेष मिलता है कोई क़ाफ़िर
कभी हम जान लेते हैं कभी पहचान लेते हैं

आते आते मेरा नाम सा रह गया

आते आते मेरा नाम सा रह गया
उसके होंठों पे कुछ कांपता रह गया

वो मेरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की तरह देखता रह गया

झूठवाले कहीं से कहीं बढ़ गये
और
मैं था के सच बोलता रह गया

आँधियों के इरादे तो अच्छे ना थे
ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया

आपको देख कर देखता रह गया

आपको देख कर देखता रह गया
क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया।

उनकी आँखों से कैसे छलकने लगा
मेरे होठों पे जो माजरा रह गया।

ऐसे बिछड़े सभी रात के मोड़ पर
आखिरी हमसफ़र रास्ता रह गया।

सोच कर आओ कू-ए-तमन्ना है ये
जानेमन जो यहाँ रह गया रह गया।

वो कौन है दुनिया में जिसे गम नहीं होता

वो कौन है दुनिया में जिसे गम नहीं होता
किस घर में खुशी होती है मातम नहीं होता

ऐसे भी हैं दुनिया में जिन्हें गम नहीं होता
एक गम हैं हमारा जो कभी कम नहीं होता

क्या सुरमा भरी आंखों से आँसू नहीं गिरते
क्या मेहंदी लगे हाथों से मातम नहीं होता

कुछ और भी होती है बिगाड़ने की अदाएं
बनने मी सवारने मे ये आलम नहीं होता

तुम ये कैसे जुदा हो गए

तुम ये कैसे जुदा हो गए
हर तरफ़ हर जगह हो गए

अपना चेहरा न बदला गया
आईने से खफा हो गए

जाने वाले गए भी कहाँ
चाँद सूरज घटा हो गए

बेवफा तो न वो थे न हम
यूं हुआ बस जुदा हो गए

आदमी बनना आसान न था
शेख जी आरसा हो गए

चाक जिगर के सी लेते हैं

चाक जिगर के सी लेते हैं
जैसे भी हो जी लेते हैं

दर्द मिले तो सह लेते हैं
अश्क मिले तो पी लेते हैं

आप कहें तो मर जाएं हम
आप कहें तो जी लेते हैं

बेजारी के अंधीयारे में
जीने वाले जी लेते हैं

हम तो हैं उन फूलों जैसे
जो कांटो में जी लेते हैं

आज फिर उनका सामना होगा

आज फिर उनका सामना होगा
क्या पता उसके बाद क्या होगा।

आसमान रो रहा है दो दिन से
आपने कुछ कहा-सुना होगा।

दो क़दम पर सही तेरा कूचा
ये भी सदियों का फ़सला होगा।

घर जलाता है रोशनी के लिए
कोई मुझ सा भी दिलजला होगा।

शहरों शहरों आज हैं

शहरों शहरों आज हैं तन्हा दिल पर गहरा दाग़ लिये
गलियों गलियों हो गये रुसवा दिल पर गहरा दाग़ लिये

आज गुलिस्तां में फैली है ख़ुशबू तेरी यादों की
मौसम-ए-गुल है हम हैं तन्हा दिल पर गहरा दाग़ लिये

रोते-धोते जी को जलाते मंज़िल-ए-शब तक आ पहुंचे
चेहरे पर है गर्द-ए-तमन्ना दिल पर गहरा दाग़ लिये

ढ़ूंढ़ने उन को शहर-ए-बुतां में आज गये थे हम भी “अदीब”
आँख में लेकर ग़म का दरिया दिल पर गहरा दाग़ लिये

ये किसका तसव्वुर है

ये किसका तसव्वुर है ये किसका फ़साना है
जो अश्क है आँखों में तस्बीह का दाना है

आँखों में नमी सी है चुप-चुप से वो बैठे हैं
नज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है

ये इश्क़ नहीं आसां इतना तो समझ लीजे
एक आग का दरिया है और ड़ूब के जाना है

या वो थे ख़फ़ा हम से या हम थे ख़फ़ा उनसे
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है

वो जो हम में तुम में क़रार था

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो के न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो के न याद हो

वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना
तुम्हें याद हो के न याद हो

कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयां से पहले ही भूलना
तुम्हें याद हो के न याद हो

जिसे आप गिनते थे आशना जिसे आप कहते थे बावफ़ा
मैं वही हूँ ‘मोमिन’-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो

फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है

फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है
सीना ज़ोया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है

फिर जिगर खोदने लगा नाख़ून
आमद-ए-फ़स्ल-ए-लालाकारी है

फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं
फिर वही ज़िंदगी हमारी है

बेख़ुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब’
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है

पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है

पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने ना जाने गुल ही ना जाने बाग़ तो सारा जाने है

चारागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वर्ना दिलबर-ए-नादां भी इस दर्द का चारा जाने है

मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुत्फ़-ओ-इनायत एक से वाक़िफ़ इन में नहीं
और तो सब कुछ तन्ज़-ओ-कनाया रम्ज़-ओ-इशारा जाने है

ओस पड़े बहार पर

ओस पड़े बहार पर आग लगे कनार में
तुम जो नहीं कनार में लुत्फ़ ही क्या बहार में

उस पे करे ख़ुदा रहम गर्दिश-ए-रोज़गार में
अपनी तलाश छोड़कर जो है तलाश-ए-यार में

हम कहीं जानेवाले हैं दामन-ए-इश्क़ छोड़कर
ज़ीस्त तेरे हुज़ूर में मौत तेरे दयार में

मुझे दे रहे हैं तसल्लियां

मुझे दे रहे हैं तसल्लियां वो हर एक ताज़ा पयाम से
कभी आके मंज़र-ए-आम पर कभी हट के मंज़र-ए-आम से

ना ग़रज़ किसी से ना वास्ता मुझे काम अपने ही काम से
तेरे ज़िक्र से तेरी फ़िक्र से तेरी याद से तेरे नाम से

मेरे साक़िया मेरे साक़िया तुझे मरहबा तुझे मरहबा
तू पिलाये जा तू पिलाये जा इसी चश्म-ए-जाम-ब-जाम से

तेरी सुबह-ओ-ऐश है क्या बला तुझे ऐ फ़लक जो हो हौसला
कभी कर ले आ के मुक़ाबला ग़म-ए-हिज्र-ए-यार की शाम से

कब से हूँ क्या बताऊं जहान-ए-ख़राब में

कब से हूँ क्या बताऊं जहान-ए-ख़राब में
शब हाय हिज्र को भी रखूं गर हिसाब में

ता फिर ना इंतज़ार में नींद आये उम्र भर
आने का अहद कर गये आये जो ख़्वाब में

क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूं
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में

मेहरबां हो के बुला लो

मेहरबां हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूं के फिर आ भी ना सकूं

ज़ौफ़ में ता नये अग़ियार का शिकवा क्या है
बात कुछ सर तो नहीं है के उठा भी ना सकूं

ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना
क्या क़सम है तेरे मिलने की के खा भी ना सकूं